For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हमारा दीपक - लघुकथा -

हमारा दीपक - लघुकथा -

"अरे ज्योति देखो, अपना दीपक आज  दिये  बनाना सीख रहा है।"

"नहीं, बिलकुल नहीं। मेरा दीपक यह गंदा काम नहीं सीखेगा। सारे दिन मिट्टी से लथपथ बने रहो।"

"ज्योति, कैसी बात करती हो| यह तो हमारा पुश्तैनी धंधा है। मेरी सात पीढियाँ यही सब करती रही हैं। उसी से घर गृहस्थी चली है।"

"वह सब गुजरे जमाने की बातें हैं। तुम्हारे पुरखे अनपढ़ थे। उन्होंने शिक्षा की ओर ध्यान नहीं दिया।"

"तुम्हारी बात से मैं सहमत हूँ लेकिन....।"

"लेकिन वेकिन कुछ नहीं, मैंने बोल दिया ना। मेरा दीपक पढ़ लिख कर मेरे भाई की तरह सरकारी नौकर बनेगा।"

"ज्योति, तुम्हारे विचार अच्छे हैं। मैं भी चाहता हूँ कि दीपक पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बने।लेकिन कल क्या होने वाला है किसे पता?"

"तो तुम क्या कहना चाहते हो?"

"मेरी राय है कि दीपक खूब मन लगाकर पढ़े।हर संभव कोशिश करे कि उसे अच्छी सी नौकरी मिल जाय मगर आजकल नौकरी मिलना भी इतना आसान कहाँ है?"

"यह बात तो है।"

"इसीलिये मेरा मानना है कि दीपक पढ़ाई के साथ साथ, अगर यह काम भी सीख लेगा तो बुरे वक्त में अपना हुनर ही काम आयेगा।"

"ठीक है फिर मुझे कोई ऐतराज नहीं है।"

माँ की सहमति मिलते ही बाप बेटा दोनों तन्मयता से अपने कार्य में लग गये। उनकी लगन देख कर उनके बनाये दिये भी मुस्कुराने लगे।

मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 564

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by TEJ VEER SINGH on January 25, 2020 at 11:20am

हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 17, 2020 at 6:57am

आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । अच्छी कथा हुई है । हार्दिक बधाई।

Comment by TEJ VEER SINGH on November 1, 2019 at 7:06pm

हार्दिक आभार आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी।

Comment by नाथ सोनांचली on November 1, 2019 at 1:29pm

आद0 तेजवीर सिंह जी सादर अभिवादन। लघुकथा का अच्छा प्रयास है पर.... इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार कीजिये।

Comment by TEJ VEER SINGH on October 28, 2019 at 6:47pm

हार्दिक आभार आदरणीय समर कबीर साहब जी। आदाब।

Comment by Samar kabeer on October 28, 2019 at 4:00pm

जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"मुस्काए दोस्त हम सुकून आली संस्कार आज फिर दिखा गाली   वाहहह क्या खूब  ग़ज़ल '…"
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
Wednesday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service