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नयनों का जिस क्षण हुआ, नयनों से सम्पर्क।
नयन नयन के हो गए, हुआ न कोई तर्क।।
हुआ न कोई तर्क, नयन नयनों पर छाए।
निकट नयन को देख, नयन नत-नत शरमाए।।
नयना ही आधार, नयन के है चयनों का।
नयन नयन का मेल, निरामय है नयनों का।।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
#हरिओम श्रीवास्तव#

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Comment by Hariom Shrivastava on September 19, 2019 at 7:35am

हार्दिक आभार आदरणीय Vijay Niklte जी।

Comment by vijay nikore on September 12, 2019 at 6:35am

सुन्दर रचना के लिए बधाई, आदरणीय हरि ओम जी

Comment by Samar kabeer on September 7, 2019 at 2:59pm

जनाब हरिओम श्रीवास्तव जी आदाब,अच्छा कुण्डलिया छन्द लिखा आपने,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Sushil Sarna on September 4, 2019 at 2:29pm

वाह आदरणीय हरिओम जी वाह , आपकी कुण्डलिया में निहित भावों का कोई सानी नहीं। नैनों के विभिन्न आयामों को परिभाषित करते इस सृजन के लिए दिल से बधाई।

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