मापनी २१२*4
चाहते हम नहीं थे मगर हो गए
प्यार में जून की दोपहर हो गए
हर कहानी खुशी की भुला दी गई
दर्द के सारे किस्से अमर हो गए
खो गए आपके प्यार में इस कदर
सारी दुनिया से हम बेखबर हो गए
प्रेम के यज्ञ में हो गया सब हवन
मंत्र जो थे सभी बेअसर हो गए
जो कभी थे बड़े खूबसूरत महल
देखते देखते खंडहर हो गए
कह दिया आपने जो हुआ सो हुआ
आँसुओं से नयन तरबतर हो गए
सुर्ख़ियों में रहे रोज अख़बार की
वक़्त के साथ बासी खबर हो गए
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
आदरणीया विजय जी, सादर नमस्कार, आपकी हौसलाअफजाई दिली शुक्रिया
आदरणीया Rakshita Singh जी, सादर नमस्कार, आपकी हौसलाअफजाई दिली शुक्रिया
आदरणीय समर कबीर जी, सादर नमस्कार, आपकी हौसलाअफजाई दिली शुक्रिया
बहुत ही सुन्दर गज़ल के लिए बधाई, मित्र बसंत कुमार जी।
आदरणीय बसंत जी नमस्कार, बहुत ही सुंदर रचना बहुत बहुत बधाई ।
जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,बहुत उम्द: ग़ज़ल कही आपने,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
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