आप आये अब गले हमको लगाने के लिए
जब न आँखों में बचे आँसू बहाने के लिए
छाँव जब से कम हुई पीपल अकेला हो गया
अब न जाता पास कोई सिर छुपाने के लिए
तितलियाँ उड़ती रहीं करते रहे गुंजन भ्रमर
पुष्प में मकरंद जब तक था लुभाने के लिए
हम नदी से बह रहे हैं खुद बनाकर रास्ता
चाह कब है सिन्धु से आये बुलाने के लिए
दर्द में डूबे हुए कब तक गुजारें जिन्दगी
कुछ गमों को छोड़ना बेहतर ज़माने के लिए
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय समर कबीर जी , आपके स्नेह को सादर नमन , बहुत बहुत आभार आपका हौसलाअफजाई के लिए
जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,आपकी ग़ज़लों पर दिन ब दिन निखार आता जा रहा है,ये देख कर प्रसन्नता हुई ।
ये ग़ज़ल भी अच्छी हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
आदरणीय C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi जी सादर नमस्कार, हौसलाअफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया
"तितलियाँ उड़ती रहीं करते रहे गुंजन भ्रमर
पुष्प में मकरंद जब तक था लुभाने के लिए "
वाह वाह ! शानदार शेर | ग़ज़ल के अन्य मिसरे भी बहुत बढ़िया हैं | बधाई बसंत कुमार शर्मा जी |
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