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दोहे दो जून के - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

कभी किसी को ना करे, भूख यहाँ बेहाल
रोटी सब दो जून की, पाकर हों खुशहाल।१।


मुश्किल  से  दो जून की, रोटी  आती हाथ
खाने को यूँ आज तो, मिल बैठो सब साथ।२।


रोटी को दो जून की, अजब गजब से खेल
इसकी खातिर जग करे, दुश्मन से भी मेल।३।


रोटी को  दो  जून  की, क्या  ना  करते लोग
झूठ ठगी दैहिक व्यसन, सब इसके ही योग।४।


रोटी बिन दो जून की, बिलखाती है भूख
रोटी  पा  दो  जून  की, ढूँढें  लोग  रसूख।५।


सदा भाग्य ने है लिखा, निर्धन के घर झोल
रोटी को  दो  जून  की, अस्मत  से  ले मोल।६।


पड़ी जलावन पर यहाँ, मँहगाई की मार
रोटी तब दो  जून  की, कैसे पकती यार।७।


रोटी से दो  जून  की, इक  है  कोसों दूर
खाना खर्चा एक को, किस्मत से भरपूर।८।


सरकारें निश्चिंत  अब, नित  कर मँहगा नून
जनता का मुश्किल हुआ, कटना यूँ दो जून।९।


मेहनतकश फाका करे, कामचोर की मौज
रोटी को दो जून की, जुटती सबकी फौज।१०।


मौलिक अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 4, 2019 at 7:32pm

आ. भाई विजय जी, सादर अभिवादन। दोहों की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 4, 2019 at 7:31pm

आ. नीलम जी, सादर आभार।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 29, 2019 at 9:36pm

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। प्रशंसा व मार्गदर्शन के लिए आभार।

Comment by vijay nikore on June 15, 2019 at 10:59am

दोहे अच्छे लिखे हैं।। बधाई, लक्ष्मण  जी

Comment by Neelam Upadhyaya on June 12, 2019 at 2:47pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर जी, नमस्कार। अच्छे दोहे लिखे हैं। बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Samar kabeer on June 12, 2019 at 11:21am

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर जी आदाब,अच्छे दोहे लिखे आपने,इसके लिए बधाई स्वीकार करें ।

'कभी किसी को ना करे, भूख यहाँ बेहाल
रोटी सब दो जून की, पाकर हों खुशहाल'

इस दोहे की तुकांतता क्या है? ग़ौर करें ।

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