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नवगीत- राजनीति के पंडे

लेकर आये

हैं जुगाड़ से,

रंग-बिरंगे झंडे

सजा रहे

हर जगह दुकानें,

राजनीति के पंडे

 

खंडित जन

विश्वास हो रहा

संबंधों का

ह्रास हो रहा

जंगल, दंगल की

भाषा का,

अद्भुत यहाँ विकास हो रहा

 

अब वादों

की फसलें होंगी,

मुर्गे देंगे अंडे

 

दुख को

देश निकाला देंगे

सुख का

रोज निवाला देंगे

सर्दी में

चिंता मत करना,

सबको एक दुशाला देंगें  

 

रोज नई

चौपाल

सजेगी,

संडे हो या मंडे

 

शेर सभी का

काज करेंगे

गीदड़ जी

अब राज करेंगे

चिंता तू

बिलकुल मत करना,

जो करना है आज करेंगे  

 

मत देने तक

मत होने दे,

अरमानों को ठंडे

 

कोई मतलब

नहीं फाग से

पाएँ कुर्सी

गुणा भाग से

चूल्हा जले,

चिता जल जाए

उन्हें खेलना रोज आग से

 

शकुनि

खोज कर  

ले आते हैं,

सूखी लकड़ी कंडे

 "मौलिक एवं अप्रकाशित"

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Comment by बसंत कुमार शर्मा on April 19, 2019 at 9:24am

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सादर नमस्कार , आपकी हौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on April 19, 2019 at 9:23am

आदरणीय समर कबीर  प्रभात , आपकी परीक्षा  पास हुआ गीत,  अच्छा लगा,  दिल से शुक्रिया आपका 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on April 19, 2019 at 9:22am

आदरणीय  फूल सिंह जी सादर नमस्कार , आपको रचना पसंद आई, आपका हृदय से आभार 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 19, 2019 at 7:25am

आ. भाई बसंत जी, सुंदर रचना हुई है । हार्दिक बधाई।

Comment by Samar kabeer on April 16, 2019 at 2:43pm

जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,अच्छा नवगीत लिखा आपने,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by PHOOL SINGH on April 15, 2019 at 5:10pm

खंडित जन

विश्वास हो रहा

संबंधों का

ह्रास हो रहा

जंगल, दंगल की

भाषा का,

अद्भुत यहाँ विकास हो रहा

 

अब वादों

की फसलें होंगी,

मुर्गे देंगे अंडे

बहुत सुंदर बधाई स्वीकारे|

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