2122 2122 2122
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गांव भी अब तो शहर बनने लगा है
प्यार औ सद्भाव भी घटने लगा है
खुल गई है खूब शिक्षा की दुकानें
ज्ञान भी अब दाम पर बिकने लगा है
हो गये है लोग बैरी अब यहां भी
खून सड़कों पर बहुत बहने लगा है
गांव के हर मोड़ पर टकराव है अब
खेत औ खलियान तक जलने लगा है
सोच ’‘मेठानी‘’ हुआ है, क्या यहां पर
जो कभी बोया वही उगने लगा है
( मौलिक एवं अप्रकाशित )
- दयाराम मेठानी
Comment
क़वाफ़ी का ये मूल सिद्धांत याद रखें ।
हर क़ाफिये के पहले हर्फ़-ए-रवी होता है,हर्फ़-ए-रवी कहते हैं क़ाफिये के पहले बार बार आने वाले हर्फ़(अक्षर) को,यहाँ आपका क़ाफ़िया 'ने' है और उसके पहले आने वाला अक्षर कभी 'न',कभी 'ट' हो रहा है,मान लीजिए आपने क़ाफ़िया लिया 'बहने'अब इसमें 'ने'क़ाफ़िया हुआ और उसका हर्फ़-ए-रवी 'ह' हुआ,अब आगे आपको 'रहने','सहने',कहने क़वाफ़ी लेना होंगे,उम्मीद है आप समझ गए होंगे ?
आदरणीय रवि शुक्ला जी, प्रोत्साहन देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार।
आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी, प्रोत्साहन देने एवं काफिया के बारे जानकारी देने के लिए बहुत बहुत आभार।
आदरणीय दिगंबर नासवा जी, प्रोत्साहन देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार।
दयाराम मेठानी
अच्छा प्रयास है ग़ज़ल का दयाराम जी .... काफिये की जानकारी उस्तादों द्वारा ... इस बात का हमें भी इंतज़ार रहेगा ...
जनाब दया राम साहिब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है मगर क़ा फिए चुन ने में चूक हो गई है, मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l औ को पूरा और लिखिए हर शेर का क़ा फिया अलग है l
बनने, घटने , बिकने, जलने, बहने, उगने
हम क़ा फिया __घटने, पटने, रटने
जलने , चलने, पलने , बदलने
बहने, कहने, सहने, रहने
मेरे ख़याल से समझ में आ गया होगा l
आदरणीय दयाराम जी मिठाई साहब गजल की कोशिश अच्छी है मुबारकबाद कुबूल करें मत लेने बढ़ने और घटने शब्द लिया है ने हटाने के बाद बंद और घट बसता है जिसमें कि तुकांत नहीं है शायद ऐसा कुछ हो सकता है विस्तार से समर साहब बताएंगे उर्दू में शह्र 21 के वज़्न में लिया जाता है आपने 12 में लिया है यह बहस का विषय है इसलिए अधिक नहीं नहीं करेंगे आपने और को हिंदी छंदों के रीतिकालीन भक्ति कालीन युग के नुसार औ रूप में इस्तेमाल किया है उर्दू में और को पूरा लिखें और यह मात्रा गिरा कर (अर) के रूप में द्विमात्रिक किया जा सकता है। सादर
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय समर कबीर जी। मार्ग दर्शान की प्रतीक्षा रहेगी। सादर।
अभी ओबीओ के तरही मुशायरे में व्यस्त हूँ, समय मिलते ही विस्तार से बताऊंगा ।
आदरणीय समर कबीर साहब, प्रोत्साहन हेतु आभार। काफिया की कमी बाबत कुछ स्पष्ट लिख दें तो उचित होगा। सादर।
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