For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : वो ज़हर का प्याला है, उठाना ही नहीं था

बह्र : 221   1221   1221   122

वो ज़हर का प्याला है, उठाना ही नहीं था
दुनिया की तरफ़ आपको जाना ही नहीं था

कानों में यहाँ रूई सभी बैठे हैं रख के
ऐसे में तुम्हें शोर मचाना ही नहीं था

खेतों में लहू देख के करते हो शिकायत
हथियार ज़मीनों में उगाना ही नहीं था

ये कौन जगह है कि जहाँ होश में सब हैं
हम रिन्द हैं हमको यहाँ लाना ही नहीं था

ताउम्र उसी शहर में ही भटका किया मैं
रहने को जहाँ कोई ठिकाना ही नहीं था

ऐसे में भला क़द्र मेरी करता वो कैसे
मैं उसका दिवाना हूँ बताना ही नहीं था

ये जीस्त वफ़ादार नहीं, जान गए थे
फिर इससे तुम्हें दिल को लगाना ही नहीं था

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 777

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mahendra Kumar on January 9, 2019 at 1:28pm

बहुत-बहुत शुक्रिया सर। संशोधित कर दिया है। हार्दिक आभार। सादर।

Comment by Samar kabeer on January 8, 2019 at 12:08pm

' ज़िन्दगी है बेवफ़ा जब जान गए थे

फिर बेवफ़ा से दिल को लगाना ही नहीं था'

इस शैर को यूँ किया जा सकता है:-

'ये ज़ीस्त वफ़ादार नहीं,जान गए थे

फिर इससे तुम्हें दिल को लगाना ही नहीं था'

Comment by Mahendra Kumar on January 7, 2019 at 8:46pm

बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय मोहम्मद अनीस शेख़ जी. हार्दिक आभार. सादर.

Comment by Mahendra Kumar on January 7, 2019 at 8:45pm

बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय सुशील सरना जी. हृदय से आभारी हूँ. सादर.

Comment by Md. Anis arman on January 7, 2019 at 8:44pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है महेन्द्र कुमार जी मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए 

Comment by Mahendra Kumar on January 7, 2019 at 8:44pm

ग़ज़ल में आपकी उपस्थिति और प्रतिक्रिया का हृदय से आभारी हूँ. बहुत-बहुत शुक्रिया. सादर.

Comment by Mahendra Kumar on January 7, 2019 at 8:43pm

बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय मोहन बेगोवाल जी. हृदय से आभारी हूँ. सादर.

Comment by Mahendra Kumar on January 7, 2019 at 8:42pm

सादर आदाब आदरणीय समर कबीर सर. ग़ज़ल में आपकी उपस्थिति और इस्लाह का हृदय से आभारी हूँ. आप द्वारा सुझाए गए दोनों मिसरे मुझे स्वीकार्य हैं. बस एक जिज्ञासा थी कि आख़िरी वाले शेर को किसी दूसरे तरीके से कहने की कोशिश की जाए या इसे हटा ही दिया जाए क्योंकि जहाँ तक मैं समझ पा रहा हूँ शायद "ज़िन्दगी" शब्द के कारण ऊला मिसरे में और "बेवफ़ा" शब्द के कारण सानी मिसरे में गेयता बाधित हो रही है. आपके प्रत्युत्तर के बाद एक साथ ग़ज़ल संशोधित करता हूँ. आपका बहुत-बहुत शुक्रिया. सादर.

Comment by Sushil Sarna on January 6, 2019 at 1:55pm

वो ज़हर का प्याला है, उठाना ही नहीं था

दुनिया की तरफ़ आपको जाना ही नहीं था

कानों में यहाँ रूई सभी बैठे हैं रख के

ऐसे में तुम्हें शोर मचाना ही नहीं था ... वाह बहुत सुंदर आदरणीय.... हार्दिक बधाई

Comment by राज़ नवादवी on January 6, 2019 at 1:26pm

जनाब  महेन्द्र कुमार साहब, आदाब. सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति पे मुबारकबाद पेश करता हूँ. सादर. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Tuesday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service