For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ७६

2121 2121 2121 212

उड़ रहे थे पैरों से ग़ुबार, देखते रहे
वो न लौटे जबकि हम हज़ार देखते रहे //१

ताब उसकी, बू भी उसकी, रंग भी था होशकुन
गुल को कितनी हसरतों से ख़ार देखते रहे //२

हम तो राह देखते थे उनके आने की मगर
वो हमारा सब्रे इन्तेज़ार देखते रहे //३

तोड़ते थे बेदिली से वो मकाने इश्क़, हम 

टूटते मकाँ का इंतेशार देखते रहे //४ 


सख़्त जाँ बनाने दरम्यानी ऐतबार को
टूटता है कैसे ऐतबार, देखते रहे //५ 


देखते थे टकटकी निगाह से उन्हें भी हम
हैरतों से हम को भी मज़ार देखते रहे //६ 

सर्फ़ हो रही थी साँस साँस अपनी ज़िंदगी
उड़ रही थी धूल बेशुमार, देखते रहे //७ 

हम गिरीबाँ चाक होके देखते थे उनकी सू  
वो हमारा ज़ख्मे आश्कार देखते रहे //८  

आ रही थी लाश सरहदों से मरने वालों की
रोके रिश्ते दार ज़ार ज़ार देखते रहे //९

हम किसी फ़क़ीर की तरह जहाँ से चल दिए
जो न थे तबा से बुर्दबार, देखते रहे //१० 

ले गए उड़ा के माल साहिबाने इक़्तेदार
जो थे इनके सच में दावेदार, देखते रहे //११ 

जब भी बात इश्क़ में उठी जफ़ा ओ ज़ुल्म की
लोग क्यों तुझे ही बार बार देखते रहे //१२

जैसे कोई देखता है अपने घर को टूटता
राज़ हम यूँ कूचा ए निगार देखते रहे //१३ 

~राज़ नवादवी

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

इंतेशार- बिखराव; ज़ख्मे आश्कार- प्रकट घाव; बुर्दबार- शांतचित्त, गंभीर, सहनशील; साहिबाने इक़्तेदार- हैसियत वाले लोग; निगार- प्रेमिका

Views: 566

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on December 5, 2018 at 9:47pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी साहब, ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफज़ाई का दिल से शुक्रिया. सादर. 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 5, 2018 at 7:19pm

आ. भाई राजनवादवी जी, सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by राज़ नवादवी on December 5, 2018 at 2:47pm

आदरणीय तेज वीर सिंह साहब, आदाब. ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया. सादर 

Comment by TEJ VEER SINGH on December 5, 2018 at 2:24pm

हार्दिक बधाई आदरणीय राज नवादवी जी।बेहतरीन गज़ल।

हम तो राह देखते थे उनके आने की मगर
वो हमारा सब्रे इन्तेज़ार देखते रहे //३

Comment by राज़ नवादवी on December 3, 2018 at 7:19pm

आदरणीय जनाब नरेन्द्र सिंह साहब, ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफज़ाई का दिले से शुक्रिया. सादर, 

Comment by narendrasinh chauhan on December 3, 2018 at 12:41pm

खूब सुन्दर रचना , आदरणीय

Comment by राज़ नवादवी on December 2, 2018 at 11:16pm

आदरणीय समर कबीर साहब, ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफज़ाई का दिल से शुक्रिया. सादर. 

Comment by Samar kabeer on December 2, 2018 at 5:24pm

जनाब राज़ साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल है,बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय रवि भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो  कर  उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. नीलेश भाई , ग़ज़ल पर उपस्थिति  और  सराहना के लिए  आपका आभार  ये समंदर ठीक है,…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"शुक्रिया आ. रवि सर "
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. रवि शुक्ला जी. //हालांकि चेहरा पुरवाई जैसा मे ंअहसास को मूर्त रूप से…"
2 hours ago
Ravi Shukla commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"वाह वाह आदरणीय नीलेश जी पहली ही गेंद सीमारेखा के पार करने पर बल्लेबाज को शाबाशी मिलती है मतले से…"
3 hours ago
Ravi Shukla commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय शिज्जु भाई ग़ज़ल की उम्दा पेशकश के लिये आपको मुबारक बाद  पेश करता हूँ । ग़ज़ल पर आाई…"
3 hours ago
Ravi Shukla commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय अमीरूद्दीन जी उम्दा ग़ज़ल आपने पेश की है शेर दर शेर मुबारक बाद कुबूल करे । हालांकि आस्तीन…"
3 hours ago
Ravi Shukla commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय बृजेश जी ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिये बधाई स्वीकार करें ! मुझे रदीफ का रब्त इस ग़ज़ल मे…"
3 hours ago
Ravi Shukla commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"वाह वाह आदरणीय  नीलेश जी उम्दा अशआर कहें मुबारक बाद कुबूल करें । हालांकि चेहरा पुरवाई जैसा…"
3 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय  गिरिराज भाई जी आपकी ग़ज़ल का ये शेर मुझे खास पसंद आया बधाई  तुम रहे कुछ ठीक, कुछ…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. गिरिराज जी मैं आपकी ग़ज़ल के कई शेर समझ नहीं पा रहा हूँ.. ये समंदर ठीक है, खारा सही ताल नदिया…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"धन्यवाद आ. अजय जी "
5 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service