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वह धरती कब की छूट गयी

जहाँ सपने थे

लोग अपने थे

वह धरती कब की छूट गयी

भीड़ थी पर ठावँ थी

धूप थी संग छावं थी

वह धरती कब की छूट गयी

जनक थे जननी थी

बसेरा था रहनी थी

वह धरती कब की छूट गयी

जो छूट गये

जो रूठ गये

वही आस पास है

यह कैसे एहसास है ?

.

मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by PHOOL SINGH on December 11, 2018 at 5:17pm

सूंदर रचना

Comment by राज़ नवादवी on December 1, 2018 at 11:10am

आदरणीय अमिता तिवारी जी, सुन्दर कृति की प्रस्तुति पे हार्दिक बधाई. सादर. 

Comment by TEJ VEER SINGH on November 26, 2018 at 8:24pm

हार्दिक बधाई आदरणीय अमिता तिवारी जी।बेहतरीन प्रस्तुति।

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