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निर्जला व्रत -लघुकथा -

निर्जला व्रत -लघुकथा -

सूरज तीन महीने बाद अमेरिका से लौटा तो सामान पटक कर सीधा अपने बचपन के मित्र रघु को सरप्राइज़ देने उसके घर जा धमका। रघु की शादी में वह विदेश दौरे के कारण शामिल नहीं हो सका था। इसलिये माफ़ी भी माँगनी थी।बदले में दोनों को ढेर सारे उपहार भी देने थे।

लेकिन यह क्या सूरज तो खुद चकित हो गया जब रघु का लटका हुआ उदास चेहरा देखा।"क्या हुआ दोस्त, क्या शादी रास नहीं आई।"

"छोड़ यार तू सुना, कब आया, कैसा रहा टूर?"

"यार बात को घुमा मत। भाभी कहाँ है?"

"छोड़ गयी तेरी भाभी।"

"मज़ाक मत कर यार।"

"मज़ाक नहीं, हक़ीकत है मेरे भाई।"

"भाई, मुझे सब कुछ खुल कर बता। आखिर इतनी जल्दी नई नई शादी में ऐसी क्या वज़ह हो गयी?"

"भाई, उस दिन मैं आफ़िस से जल्दी आगया था। उस वक्त सुधा सो रही थी। उसने पूरा श्रंगार कर रखा था।मेरी मन पसंद गुलाबी साड़ी पहन रखी थी। मैं भी  लेट गया। वह गहरी नींद में थी। उसके सेंट, लिपिस्टिक, मेंहदी और केश तेल की मिली जुली गंध मुझे उत्तेजित कर रही थी। मैं बेचैन हो गया। मैंने इसी भावावेश में उसके होठों पर अपने होठ रख दिये। बस भूचाल आ गया। उसने मुझे धक्का मार कर नीचे गिरा दिया।"

"जंगली, जानवर, मेरा व्रत बिगाड़ दिया। मुझे नहीं रहना तुम्हारे साथ।" सुधा बड़बड़ाती हुयी घर से निकल गयी।

"फिर तुमने क्या किया?"

"मैंने बीसियों फोन किये पर उसने नहीं उठाया।"

"उनके घरवालों से बात की।"

"हाँ की थी। उसके माँ बाप ने कहा कि पति पत्नी के झगड़े में हम नहीं पड़ेंगे।"

"चल उठ, अभी तेरे ससुराल चलना है।"

"नहीं यार, मैं कहीं नहीं जाऊंगा।"

"ज़िद मत कर यार। वैसे तो हर रिश्ते को बचाने के लिये भरसक प्रयास करने चाहिये। और ये तो पति पत्नी का रिश्ता है। सबसे महत्वपूर्ण और अनमोल रिश्ता।"

कुछ ही क्षणों में दोनों मित्र सुधा के घर पर थे। सुधा बाहर ही खड़ी थी जैसे वह भी इसी पल का इंतज़ार कर रही थी।

रघु से नज़र मिलते ही उसकी अश्रुधारा बहने लगी।

"भाभी जी, एक बात बताइये। आपने वह व्रत किसके लिये रखा था?"

"इन के लिये।"

"और आप इसी को छोड़ कर चले आये।"

मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by TEJ VEER SINGH on October 30, 2018 at 8:59am

हार्दिक आभार आदरणीय नीता कसार जी।

Comment by Naveen Mani Tripathi on October 30, 2018 at 2:09am

आ0 तेजवीर सिंह साहब अत्यंत सुंदर कथा हेतु आपको बधाई ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 30, 2018 at 2:06am

बहुत बढ़िया संदेश वाहक समसामयिक सृजन। हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब।

Comment by Nita Kasar on October 29, 2018 at 7:19pm

संदेशप्रद कथा है।जिस के लिये व्रत रखा उससे ही नाराज़ होकर घर छोड़ना गलत है।कथा के जरिये सारगर्भित संदेश है बधाई आद० तेजवीरसिंह जी ।

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