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ग़ज़ल...ले ली मेरी जान सलीके से-बृजेश कुमार 'ब्रज'

वो बैठा दिल में आन सलीके से
फिर ले ली मेरी जान सलीके से

यूँ ही पहले थोड़ी सी बात हुई
बन बैठे फिर अरमान सलीके से

पल भर को पहलू में आओ चन्दा
इतना तो कर अहसान सलीके से

काफी है पलकों का उठना गिरना
तू नैन कटारी तान सलीके से

दिल की दुनिया लूट गईं दो आँखें
फिर होती हैं हैरान सलीके से

कोने की उस जर्जर अलमारी में
रख छोड़े कुछ अरमान सलीके से

जिनको थी लाज बचानी कलियों की
बन बैठे वो हैवान सलीके से

नाजों से जिसने पाला 'ब्रज' तुमको
तुम रखना उनका मान सलीके से

क्या खूब ग़ज़ल तुमने कह डाली 'ब्रज'
अब तो वो देगा ध्यान सलीके से
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 26, 2018 at 7:57pm

आदरणीय समर जी सादर नमस्कार..शुतरगुर्बा को मैंने समझने की कोशिश की है और थोड़ा बहुत समझा भी हूँ फिर इस शे'र में मुझे शुतरगुर्बा समझ नहीं आ रहा!!सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 26, 2018 at 7:51pm

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय त्रिपाठी जी..सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 26, 2018 at 7:51pm

तहेदिल से शुक्रिया ज़नाब सुर्खाब जी..सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 26, 2018 at 7:49pm

आदरणीय तेजवीर सिंह जी रचना पटल पे आपका हार्दिक स्वागत एवं आभार...सादर

Comment by Samar kabeer on October 26, 2018 at 5:29pm

जनब बृजेश कुमार "ब्रज" साहिब आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

'पल भर को पहलू में आओ चन्दा
इतना तो कर अहसान सलीके से'

इस शैर में शुतरगुर्बा ऐब है, देखें ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on October 26, 2018 at 1:07pm

आ0 ब्रज साहब बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई  हार्दिक 

बधाई आपको ।

Comment by Surkhab Bashar on October 26, 2018 at 11:09am

जनाब बृजेश कुमार जी उम्दा ग़ज़ल है

और ज़मीन भी

Comment by TEJ VEER SINGH on October 26, 2018 at 9:40am

हार्दिक बधाई आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज'जी।बेहतरीन गज़ल।

जिनको थी लाज बचानी कलियों की 
बन बैठे वो हैवान सलीके से

कृपया ध्यान दे...

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