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शोहरत पर कुछ क्षणिकाएं :

शोहरत पर कुछ क्षणिकाएं :

कुछ रिश्ते
रिश्तों का
दिलाने लगे हैं
अहसास
शायद
शोहरत की चमक से
वो
बनने लगे हैं
ख़ास
.... .... .... .... ....
शोहरत की ऊंचाई से
लगते हैं
सभी बौने
यश की धूप
सांझ से डरती है
जाने
कब उतर जाये
यश के जिस्म से
अहं का मुलम्मा
और रह जाएँ
हाथों में
यथार्थ के
खाली दोने
.... .... .... .... .... ....
दर्पण
अंधे हो जाते हैं
अंधेरों में
यथार्थ और ख्वाब
खो देते हैं
अपना अक्स
उग आती हैं
अहं की घास
शोहरत की
कच्ची मुंडेरों पर

.......................

जाती ही नहीं
शोहरत की दीवारों से
मन से टूटे
रिश्तों के
दर्द भरी
सीलन

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 804

Comment

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Comment by Sushil Sarna on October 4, 2018 at 12:35pm

आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'  ..जी. सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 3, 2018 at 4:41pm

आ. भाई सुशील जी, अच्छी कविता हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Sushil Sarna on October 2, 2018 at 2:48pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब। ... सृजन पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on October 2, 2018 at 2:47pm

आदरणीय  Ajay Tiwari जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार। आपका कथन सही है। मैं आपकी बात से सहमत हूँ। आपके द्वारा किया गया संशोधन भी उत्तम है। इसे भी मैं अभी ठीक कर पुनः प्रेषित करता हूँ। हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on October 2, 2018 at 2:43pm

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार। आपका कथन सही है। मैं इस त्रुटि को अभी एडिट करता हूँ। इस हेतु आपका हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on October 2, 2018 at 2:41pm

आदरणीय  narendrasinh chauhan ..जी. सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by Samar kabeer on October 2, 2018 at 12:18pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छी क्षणिकाएं हुई हैं,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Ajay Tiwari on October 1, 2018 at 8:37pm

आदरणीय सुशील जी, बहुत अच्छी क्षणिकाएं प्रस्तुत की है. हार्दिक बधाई. 

मेरे ख्याल से आख़िरी क्षणिका को दो हिस्सों बाँट कर अलग अलग क्षणिकाओं के तौर पर पेश करना बेहतर होगा :

1

दर्पण 
अंधे हो जाते हैं 
अंधेरों में 
यथार्थ और ख्वाब 
खो देते हैं 
अपना अक्स 
उग आती हैं 
अहं की घास 
शोहरत की 
कच्ची मुंडेरों पर

 2
जाती ही नहीं 
शोहरत के कमरों से 
मन से टूटे 
रिश्तों के 
दर्द की 
सीलन

सादर 

Comment by नाथ सोनांचली on September 30, 2018 at 9:24am

आद0 सुशील सरना जी सादर अभिवादन।क्षणिकाओं के माध्यम से बढ़िया भाव सम्प्रेषण हुआ है । बहुत बहुत बधाई स्वीकार कीजिये।

एक जगह टंकण त्रुटि महसूस हो रही हैं। देखियेगा

//कब उत्तर जाये// मुझे लग रहा है यहां "उतर" जाए शुद्ध होगा।

Comment by नाथ सोनांचली on September 30, 2018 at 9:21am

आद0 नरेंद्र सिंह चौहान जी आपकी प्रतिक्रिया इस मंच के अनुकूल कतई नहीं है पर आप इस बात को संज्ञान में भी नहीं ले रहे हैं जो बेहद अफसोस जनक है।

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