For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तेरे मेरे मुक्तक :मात्रा आधारित....

तेरे मेरे मुक्तक :मात्रा आधारित....

1.
ख़्वाब फिर महके हैं सावन की रात में।
जवाँ दिल बहके ..हैं सावन की रात में।
बारिश की बूंदों में .उल्फ़त की आतिश-
जज़्बात दहके हैं ..सावन ..की रात में।

2.
सालों साल उनकी खबर नहीं .आती ।
कभी ख़्वाबों में वो नज़र नहीं  आती ।
ऐसे   रूठे वो   कि . रूठ  गयी  साँसें -
दिल के शहर में अब सहर नहीं आती।

3.
खुशी के पर्दे  में  क्यूँ   नमी .बनी   रहती है।
हर जानिब इक गम की चादर तनी रहती है।
पैबंद   सी   लगती   है  हंसी  अब  होठों पर -
चश्मे साहिल पर गम की स्याही जमी रहती।

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 974

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नाथ सोनांचली on August 30, 2018 at 1:06pm

आद0सुशील सरना जी सादर अभिवादन। मुक्तक का प्रयास बेहतर है, इसके लिए बधाई। पर अभी बहुत कुछ करना बाकी है।आद0 समर साहब की बातों पर गौर कीजयेगा और मुक्तक का कुछ और अध्ययन। बेहतर के लिए शुभकामनाएं

Comment by Samar kabeer on August 30, 2018 at 11:53am

जनाब सुशील सरना जी आदाब,मुक्तक का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

पहला मुक्तक 22 मात्रा

दूसरा  21 मात्रा

तीसरा 23 मात्रा ।

लेकिन मात्रा की गिन्ती पूरी होने से लय नहीं आ रही है,इस पर विचार करें ।

"सालों साल उनकी खबर नहीं .आती ।
कभी ख़्वाबों में वो नज़र नहीं  आती'

पहली पंक्ति में 'उनकी' को "उसकी" करना उचित होगा ।

बहतर होगा मंच पर मौजूद मुक्तक का अध्यन करें ।

Comment by narendrasinh chauhan on August 29, 2018 at 6:43pm
खुब सुन्दर रचनाए
Comment by Naveen Mani Tripathi on August 29, 2018 at 12:23pm

जी सुन्दर संशोधन

Comment by Sushil Sarna on August 28, 2018 at 9:04pm

आदरणीय Naveen Mani Tripathi जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा एवं सुझाव का दिल से शुक्रिया। ये संशोधन कैसा रहेगा : दिल जवाँ बहके ..हैं सावन की रात में.... या फिर आज दिल बहके हैं सावन की रात में।

Comment by Naveen Mani Tripathi on August 28, 2018 at 6:45pm

बहुत अच्छा मुक्त है । 

ख्वाब की मात्रा 21 है जबकि दूसरी पंक्ति जवाँ से प्रारम्भ कर रहे हैं जिसकी मात्रा 12 है । 

अगर 2 1 से दूसरी पंक्ति का आगाज हो तो गेयता बढ़ जायेगी ।

शुभ शुभ 

Comment by Sushil Sarna on August 28, 2018 at 6:05pm

आदरणीय  बसंत कुमार शर्मा जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 28, 2018 at 5:40pm

वाह बेहतरीन मुक्तक 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Dayaram Methani commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मन में केवल रामायण हो (,गीत)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, अति सुंदर गीत रचा अपने। बधाई स्वीकार करें।"
8 hours ago
Dayaram Methani commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post लघुकविता
"सही कहा आपने। ऐसा बचपन में हमने भी जिया है।"
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' shared their blog post on Facebook
9 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
yesterday
Dharmendra Kumar Yadav posted a blog post

ममता का मर्म

माँ के आँचल में छुप जातेहम सुनकर डाँट कभी जिनकी।नव उमंग भर जाती मन मेंचुपके से उनकी वह थपकी । उस पल…See More
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक स्वागत आपका और आपकी इस प्रेरक रचना का आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत दिनों बाद आप गोष्ठी में…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी। रचना पर कोई टिप्पणी नहीं की। मार्गदर्शन प्रदान कीजिएगा न।"
Nov 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 30
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"सीख ...... "पापा ! फिर क्या हुआ" ।  सुशील ने रात को सोने से पहले पापा  की…"
Nov 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आभार आदरणीय तेजवीर जी।"
Nov 30

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service