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मौन

मौन में शाश्वत सुख है, शब्द में आक्रन्द है

शब्द नहीं अनिवार्य होते दो दिलों की चाह में
सब समझ लेते हैं प्रेमी सिर्फ़ अपनी आह मे
मन से मन का मेल है तो नीरवता भी छंद है
मौन मेंशाश्वत..........

शब्द की तो एक सीमा,अविरत होता मौन है
शब्द के तो बाण होते मौन कितना सौम्य है
मौन में तो सहजता है, शब्द में पाखंड है
मौन में शाश्वत ...........

क्या कहुँ,कितना कहुँ,किसको कदुँ क्योंकर कहुँ
सच्चा कहुँ,मिथ्या कहुँ,मैं ये कहुँ या वो कहुँ
दुविधा नहीं संकोच कोई मौन में आनंद है
मौन में शाश्वत..........

मौन में है शब्दों से शक्ति तभी
बीन कहे ईश्वर समझलेते सभी
मस्जिदों में हो नमाजे बन्दगी
या हो मुखरित मंदिरों में प्रार्थना
भक्तों को आशिष देतीं मूर्तियाँ सानन्द हैं
मौन में शाश्वत............

प्रकृति के मौन में भी सात सूर का ताल है
पवन के झोंके नदी की चाल में आलाप है
मौन रहकर सृष्टि पालन प्रकृति का ढंग है
मौन में शाश्वत ...............

स्पर्श माताका है बनता, स्नेहमय ममता की भाषा
मौन रहेता है शिशु पर पूर्ण होती सर्व आशा
मौन लीला कृष्ण की समझे यशोदा नंद हैं
मौन में शाश्वत सुख है,शब्द में आक्रन्द है ।।

मौलिक एवं अप्रकाशित  ।

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Comment by Kishorekant on August 9, 2018 at 7:28pm

धन्यवाद आदरणीय महम्मद अरिफ साहब 

Comment by Kishorekant on August 9, 2018 at 7:26pm

आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय समर कबीर जी ।कृपा बनाये रक्खें ।

Comment by Samar kabeer on August 9, 2018 at 3:46pm

जनाब किशोरकांत जी आदाब,अच्छी रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Mohammed Arif on August 8, 2018 at 12:35pm

आदरणीय किशोरकांत जी आदाब,

                                    मौन रहकर भी बहुत कुछ कहा जा सकता है । मौन सबसे बड़ी शक्ति है । बेहतरीन अतुकांत कविता । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

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