For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Kishorekant
  • Male
  • Toronto
  • Canada
Share on Facebook MySpace

Kishorekant's Friends

  • Sheikh Shahzad Usmani
  • Samar kabeer
  • CHANDRA SHEKHAR PANDEY
  • डॉ नूतन डिमरी गैरोला
  • वेदिका
  • Dr.Prachi Singh

Kishorekant's Groups

 

Kishorekant's Page

Profile Information

Gender
Male
City State
Ahmedabad
Native Place
Ahmedabad
Profession
Retired
About me
Love writing poems, act in plays
फ़रियाद----------मुक़द्दर में हमारे तुमने,जुदाई क्यों अता करदीज़रा इतना तो बतलाओ,कि ऐसी क्या खता करदी ।मेरी मजबुरीयोंको,नाम रुसवाई का दिया तुमनेखाामोश ही थे, बात ऐसी, क्या, बता करदी ।कहाँ माँगी थी जन्नत , या ज़माने भर की दौलत भीमेरी तक़दीर से, ख़ुशियाँ सभी क्यों लापता करदी ।पढ़ा था क़ाफ़िया हमने,यूँ ही महेफील में यारों कीतुम्हारा ज़िक्र क्या आया,खुदा या दासताँ करदी ।खड़े चौराहे पर अबभी,कोई पैग़ाम आजायेहमें ये देखना, आते हो तुम कि या कता करली ।।

Kishorekant's Photos

  • Add Photos
  • View All

Kishorekant's Blog

मौन

मौन

मौन में शाश्वत सुख है, शब्द में आक्रन्द है

शब्द नहीं अनिवार्य होते दो दिलों की चाह में

सब समझ लेते हैं प्रेमी सिर्फ़ अपनी आह मे

मन से मन का मेल है तो नीरवता भी छंद है

मौन मेंशाश्वत..........

शब्द की तो एक सीमा,अविरत होता मौन है

शब्द के तो बाण होते मौन कितना सौम्य है

मौन में तो सहजता है, शब्द में पाखंड है

मौन में शाश्वत ...........

क्या कहुँ,कितना कहुँ,किसको कदुँ क्योंकर कहुँ

सच्चा कहुँ,मिथ्या कहुँ,मैं ये कहुँ या वो कहुँ…

Continue

Posted on August 7, 2018 at 6:12pm — 4 Comments

ग़ैर मुदर्रफ ग़ज़ल की कोशिश

ये हवा कैसी चली है आजकल

सब यहाँ दिखते दुखी हैं आजकल

दुख किसीको है अकेला क्यों खड़ा

और किसीको भीड का ग़म आजकल

है शिकायत नौजवाँ को बाप से

बाप को लगता वो बिगड़ा आजकल

मायने हर चीज के बदले यहाँ

है नहीं अच्छा बुरा कुछ आजकल

बाँटकर खाने के दिन वो लद गये

लूटलो जितना सको बस आजकल

मुल्क के ख़ातिर गँवाते जान थे

क़त्ल करते मुल्कमें ही आजकल

क़ौल के ख़ातिर गँवायें जान…

Continue

Posted on August 5, 2018 at 9:30pm — 9 Comments

ग़ज़ल

1222,1222, 1222, 1222

चलो ये बोझ भी दिलपर उठाकर देख लेते हैं

किसीको हम ज़रा दिलमें बसाकर देख लेते हैं

जियेगें किस तरह तन्हाँ यहाँ साथी अगर छूटा

यहाँ जो बेवजह रूठा मनाकर देख लेते हैं .....

कहाँतक हार है अपनी ज़रा इसका पता करलें

यहाँ भी ईक नयी बाज़ी लगाकर देख लेते है....

कहो कैसे यक़ीं तुमको दिलायें आशनाई का.

लगेहैं जख्म जो दिल पर दिखाकर देख लेते हैं

जमींपर जो नहीं मिलते वो मिलते आसमानों पर

चलो…

Continue

Posted on August 4, 2018 at 5:30pm — 5 Comments

ग़ज़ल

हमें ख़ुशियाँ नहीं क्यों ग़म मिला है
नहीं माँगा वही हरदम मिला है

अधूरी चाहतें लेकर जिये हैं
हमेशा चाहतोंसे कम मिला है

नहीं फ़रियाद बस सजदे किये हैं
कहो जन्नतमें’ क्यों मातम मिला है

सफ़र कांटोभरा क्या कम नहीं था
हमें बेज़ार क्यों मौसम मिला है

मनानेके सभी फ़न बेअसर हैं
बड़ा ही संगदिल हमदम मिला है


१२२२,१२२२,१२२ “अम” मिला है ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Posted on August 2, 2018 at 7:12pm — 1 Comment

Comment Wall (1 comment)

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

At 11:21am on August 5, 2018, Usha Awasthi said…

आभार आपका

 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक स्वागत आपका और आपकी इस प्रेरक रचना का आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत दिनों बाद आप गोष्ठी में…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी। रचना पर कोई टिप्पणी नहीं की। मार्गदर्शन प्रदान कीजिएगा न।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"सीख ...... "पापा ! फिर क्या हुआ" ।  सुशील ने रात को सोने से पहले पापा  की…"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आभार आदरणीय तेजवीर जी।"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।बेहतर शीर्षक के बारे में मैं भी सोचता हूं। हां,पुर्जा लिखते हैं।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। चेताती हुई बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। लगता है कि इस बार तात्कालिक…"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
" लापरवाही ' आपने कैसी रिपोर्ट निकाली है?डॉक्टर बहुत नाराज हैं।'  ' क्या…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। उम्दा विषय, कथानक व कथ्य पर उम्दा रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। बस आरंभ…"
Friday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service