For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122 1122 1122 22

कुछ धुंआ घर के दरीचों से उठा हो जैसे ।

फिर कोई शख्स रकीबों से जला हो जैसे ।।

खुशबू ए ख़ास बताती है पता फिर तेरा ।

तेरे गुलशन से निकलती ये सबा हो जैसे ।।

बादलों में वो छुपाता ही रहा दामन को ।

रात भर चाँद सितारों से ख़फ़ा हो जैसे ।।

जुल्म मजबूरियों के नाम लिखा जायेगा ।

बन के सुकरात कोई ज़ह्र पिया हो जैसे ।।

खैरियत पूँछ के होठों पे तबस्सुम आना ।

हाल ए दिल मेरा तुझे खूब पता हो जैसे ।।

बस जफाएँ ही जफाएँ हैं तेरी महफ़िल में ।

ज़ख़्म सीने का तेरे और हरा हो जैसे ।।

इस तरह घूर के देखा है उन्होंने हमको।

उनकी नजरों में हमारी ही ख़ता हो जैसे ।।

राज़ से पर्दा उठाती हैं ये आँखे तेरी ।

मुन्तज़िर हो के तू मुद्दत से खड़ा हो जैसे ।।

लोग पोरस की तरह हार गए हैं शायद ।

वो सिकन्दर सा ज़माने से लड़ा हो जैसे ।।

एक मुद्दत से मियां होश में मिलते ही नहीं ।

आपको हुस्न करीने से डसा हो जैसे ।।

शोर बरपा है बहुत तिश्नगी के आलम में ।

आज मैख़ाने में हंगामा हुआ हो जैसे ।।

--नवीन मणि त्रिपाठी

मौलिक अप्रकाशित

Views: 761

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on August 8, 2018 at 12:58pm

गज़ल अच्छी बनी है। आपको बधाई, नवीन जी।

Comment by Samar kabeer on August 7, 2018 at 11:01am

'बन के सुकरात कोई ज़ह्र पिया हो जैसे'

इस मिसरे पर जनाब रवि जी की शंका ठीक लगती है,चाहें तो यूँ भी कर सकते हैं:-

'ज़ह्र सुक़रात ने फिर आज पिया हो जैसे'

क्या कहते हैं रवि जी इस मिसरे के बारे में?

Comment by Naveen Mani Tripathi on August 7, 2018 at 8:25am

आ0 रवि शुक्ला जी सप्रेम आभार । इस पर मैं आ0 कबीर साहब का विचार भी आमंत्रित करता हूँ । 

Comment by Ravi Shukla on August 6, 2018 at 11:47pm

आदरणाीय नवीन मणिजी गजल के लिए बघाई स्वीकार करें  हर को काेई  पिये जैसे  या किसी ने जहर  पिया हो जैसे  कुछ इस प्रकार वाक्य विन्यास होरहा है इस  मिसरे में । शंका का समाधान कीजियेगा। सादर 

Comment by Naveen Mani Tripathi on August 5, 2018 at 11:03pm

आ0 बसन्त कुमार शर्मा साहब हार्दिक आभार ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on August 5, 2018 at 11:02pm

आ0 तेजवीर सिंह साहब हार्दिक आभार 

Comment by Naveen Mani Tripathi on August 5, 2018 at 11:01pm

आ0 नरेंद्र सिंह चौहान साहब शुक्रिया

Comment by Naveen Mani Tripathi on August 5, 2018 at 11:00pm

आ0 सन्तोष खिरवादकर साहब हार्दिक आभार 

Comment by Naveen Mani Tripathi on August 5, 2018 at 10:59pm

आ0 कबीर सर सादर नमन । 

गलती के लिए माफ़ी ।

आगे से विशेष ध्यान दूंगा ।

Comment by santosh khirwadkar on August 5, 2018 at 7:29pm

वाह ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिये शे’र दर शे’र बधाई स्वीकारें!

राज़ से पर्दा उठाती हैं ये आँखे तेरी

मुन्तज़िर हो के तू मुद्दत से खड़ा हो जैसे ....बेहद ख़ूबसूरत शे’र !!!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
Thursday
Sushil Sarna posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Jun 3
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Jun 3

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Jun 3
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service