For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

'बेटी फंसाओ या बचाओ?' (लघुकथा)

"अरे रुको! तुम हमारी मिहनत को यूं बरबाद नहीं कर सकते! हटाओ अपनी ये झाड़ू! रोको अपना खोखला मिशन!" अपने माथे की ओर की अपनी डोर में टपकती मकड़ी की चुनौती सुनकर भय्यन के हाथ से मकड़जाल की ओर जाती झाड़ू डंडे सहित नीचे गिर पड़ी।


"न तो तुम जैसे आम आदमी हमारे शिकारों को बचा सकते हो, न ही तुम्हारे तथाकथित सेवक और सरकारी या प्राइवेट रक्षक! सबको भक्षक और ग्राहक बनाना हमें बाख़ूबी आता है, समझे!" उस बड़ी सी मकड़ी ने मकड़जाल में फंसे और तड़पते 'बड़े से कीड़े' को देखते हुए भय्यन से कहा - "हमारी पहुंच और उच्च व्यवहारिक-मनौवैज्ञानिक तकनीक को तुम लोग समझते हुए भी हमारे ख़िलाफ़ कुछ नहीं कर सकते, क्योंकि तुम कर्ज़ों के बोझों से ही नहीं, बल्कि विकसितों की उपलब्धियों और ऐबों से भी बोझिल हो कर उनसे होड़बाज़ी में आंखों में पट्टियां बांधे दौड़े चले जा रहे हो, बस!"


भय्यन अपने और अपने साहब और उनके परिवार के गिरेबानों में झांक कर उस कीड़े में अपनी, अपने परिवार, साहब और उनके परिवार को प्रतिबिंबित होते देखने लगा। वह बड़ी सी मकड़ी उसके सिर के ऊपर से वापस अपने जाले में जाकर उस कीड़े के साथ नाना प्रकार से आतंकी-बलात्कार सा करने लगी।


"जब तुम लोग देशी और विदेशी उद्योपतियों और नेताओं के जालों में फंसने को ही अपनी तरक़्क़ी समझ बैठे हो, तो हम तु्म्हारी बहुमुखी प्रतिभाशाली समाज निर्मात्री बहु-बेटियों को अपने जालों में क्यों न फंसाये 'सशक्तिकरण और समानता के नाम' पर भुना-भुना कर; मोटी रकम बांट-बांंट कर?"


यह सुनकर भय्यन की आंखें फटी की फटी रह गईं!


"चिल्लाते फिरते हो स्वच्छता और बेटी बचाने के बावत और ढोंग कर-कर के धन बरबाद करते रहते हो तुम सब; नीचे से ऊपर तक; हर तबके में!" मकड़ी की डांट और अट्टहास सुनकर भय्यन के कानों में कुछ दिनों के 'भ्रष्टाचार और बलात्कार' संबंधित टेलीविजन समाचार गूंजने लगे। अपने दोनों कानों को हथेलियों से ढांकते हुए वह जाले की ओर देखने लगा, जहां वह बड़ी सी मकड़ी उस कीड़े को पलटा-पलटा कर उसे नोंच-खचोंट रही थी।


"पहले हमारा काम देश की महिलाओं पर हावी 'पुरुष-प्रधान समाज' से आसान हुआ करता था! ... अब विदेशी संस्कृति और फैशन के 'अंधे ग्राहक' बनने-बनाने की आड़ और होड़ में तथाकथित 'स्त्री-पुरूष समानता, खुलेपन और महिला सशक्तिकरण' से हमारे काम पहले से अधिक आसान हो गये हैं, समझे!"


यह सुनकर भय्यन कमरे की खिड़की से कॉलोनी के आधुनिक नज़ारे देखते हुए जाले की ओर फिर से देखने लगा। वह मकड़ी अब अपने शिकार को चूसने में भिड़ी हुई थी! भय्यन ने डंडे में बंधी झाड़ू पुनः हाथ में उठाई ही थी कि वह जाले से बाहर अपनी पतली सी डोरी में नीचे उसकी ही ओर टपकती हुई उसे ललकारते हुए बोली - "अपने मुल्क के हालात देख रहे हो न! अपनी धार्मिक-सांस्कृतिक जड़ें कमज़ोर करने वालों की जगहंसाई समझ पा रहे हो न!"


"तो मैं अकेला क्या कर लूंगा? मैं तो अनपढ़ चपरासी हूं! यह तो पढ़े-लिखों, नेताओं और अधिकारियों के काम हैं!" वह बेचारा माथे पर हाथ फेरता हुआ सोच ही रहा था कि वह मकड़ी वापस जाल में पहुंची और शिकार का पूरा सेवन करने के बाद उसका कंकाल जाले से नीचे गिराती हुई बोली - "अब तो लोग स्वेच्छा से आधुनिक बहु-बेटियों को जालों में फंसवाने लगे हैं अपना स्टेटस ऊंचा दिखाने या कर्ज़ चुकाने के लिए! मकड़ियाँ और जाले तो काम पर हैं देश-विदेश के कोने-कोने में! असली या छद्म रूपों में, समझे! ... 'बेटी बचाओ' और 'बेटी बचाओ' के नारों-स्लोगनों से और अभियानों में धन ख़र्च करने से कुछ नहीं होगा! शिक्षित हो या अनपढ़; ग़रीब हो या अमीर; पहले कर्ज़ों, भ्रष्टाचारियों, अंधविश्वासों, धर्मभीरुता और पाखण्डों से अपने को और देशवासियों को मुक्त कर लो भाई!"


अब तो भय्यन का ख़ून खौल उठा। पूरी ताक़त से उस मकड़जाल पर झाड़ू उसने दे मारी और मकड़ी को नीचे गिराकर, पैर से कुचलकर हांफता हुआ वहीं ज़मीन पर बैठ गया।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 560

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 9, 2018 at 5:59pm

टिप्पणियों द्वारा अनुमोदन, इस्लाह और विचार साझा करने हेतु और पुनः स्नेहिल हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया  ,  मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब  और जनाब तस्दीक़ अहमद ख़ान साहिब। चाह कर भी कटौती नहीं कर पाया। कटौती से मूल भाव प्रभावित हो सकते थे। मार्गदर्शन निवेदित।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on August 6, 2018 at 9:52pm

जनाब शहज़ाद उस्मानी साहिब आ दाब, अच्छी मगर लंबी लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l 

Comment by Samar kabeer on August 5, 2018 at 6:12pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,लघुकथा अच्छी हुई है,लेकिन तवालत बहुत है, इस ओर ध्यान दें,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 5, 2018 at 2:49pm

कृपया अंतिम पंक्तियों के पहले वाले अनुच्छेद में इस पंक्ति को संशोधित कर पढ़िएगा :

//. 'बेटी बचाओ' और 'बेटी बचाओ' के नारों-स्लोगनों // =// 'बेटी बचाओ' और 'बेटा-बेटी एक समान' के नारों-स्लोगनों //। सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
3 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"धन्यवाद सर, आप आते हैं तो उत्साह दोगुना हो जाता है।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सुझाव के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। आपकी उपस्थिति और स्नेह पा गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ । आपके अनुमोदन…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुइ है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"शुक्रिया ऋचा जी। बेशक़ अमित जी की सलाह उपयोगी होती है।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"बहुत शुक्रिया अमित भाई। वाक़ई बहुत मेहनत और वक़्त लगाते हो आप हर ग़ज़ल पर। आप का प्रयास और निश्चय…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service