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न कोई तिश्नगी होती न कोई हादसा होता

1222 1222 1222 1222


यहां इंसानियत से गर सभी का राबिता होता ।।
यकीनन मुल्क का यह सर नहीं झुकता मिला होता ।।1

मुहब्बत के उसूलों को अगर उसने पढ़ा होता ।
न कोई तिश्नगी होती न कोई हादसा होता ।।2

बहुत बेचैन दरिया की उसे पहचान है शायद ।
वग़रना वह समंदर तो नदी को ढूढ़ता होता ।।3

तुम्हारी शर्त को हम मान लेते बेसबब यारों।
हमें अंजामे रुसवाई अगर इतना पता होता ।।4

सियासत दां से गर मिलता कहीं अमनो सुकूँ कोई।
तो उनका भी भला होता हमारा भी भला होता ।।5

अमीरों की हिमायत में न होते आप तो शायद ।
नहीं मुफ़लिस की दीवारों पे बुलडोजर चला होता ।।6

कदम को चूम लेती कामयाबी एक दिन बेशक ।
बचा तेरे इरादों में अगर कुछ हौसला होता ।।7

निभे हैं कब वहां रिश्ते बिखरते टूटते पाये ।
जहाँ नज़दीकियों के बीच में कुछ फ़ासला होता ।।8

असर करतीं मेरी मजबूरियां जो आपके दिल तक।
तो मेरा भी यकीनन आप से ही वास्ता होता ।।9

परिंदा उड़ के आ जाता तुम्हारी बाग में लेकिन ।
कफ़स से भी निकलने का कोई तो रास्ता होता ।।10

जरा सा मुश्किलों पर गौर कर लेना जरूरी है ।
कोई इंशान मर्जी से नहीं अब बेवफ़ा होता ।।11

---नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by TEJ VEER SINGH on July 7, 2018 at 7:03pm

हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन मणि जी । बेहतरीन गज़ल।

अमीरों की हिमायत में न होते आप तो शायद ।
नहीं मुफ़लिस की दीवारों पे बुलडोजर चला होता ।।6

Comment by Naveen Mani Tripathi on July 7, 2018 at 3:48pm

आ0 कबीर सर सादर नमन के साथ आभार । आपकी महत्वपूर्ण इस्लाह के अनुसार मैंने पोस्ट एडिट कर दिया है । एक बार पुनः नमन ।

Comment by Samar kabeer on July 7, 2018 at 3:20pm

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

मतले के ऊला में 'इन्शानियत', को "इंसानियत" कर लें,सानी मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है 'मुल्क' को "देश" कर लें ।

दूसरे शैर के सानी में टंकण त्रुटि देखें।

चौथे शैर में शुतरगुर्बा देखें ।

ड्सवें शैर के सानी में ऐब-ए-तनाफ़ुर है, लेकिन मान्य है ।

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