For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सोज़-ए-शहर (लघुकथा)

"इन दरख़्तों के टुकड़े हज़ार हुए कोई यहां गिरा, कोई वहां गिरा; कोई यहां गया, कोई वहां गया !" कटे हुए पेड़ों के शेष ठूंठों और उनकी कराहती जड़ों की ओर निहारते हुए पड़ोसी पेड़ अपनी शाखाओं का रुख़ ज़मीं की ओर करते हुए एक फ़िल्मी नग़में की तर्ज़ पर शोक-गीत गाने लगे।


"ये शहादत खाली नहीं जायेगी! दिल्ली की खिल्ली उड़वा रहे हैं दुनिया में शेख़ चिल्ली!" पास के एक ऊंचे से पेड़ ने अपना अंतिम अट्टाहास करते हुए कहा।


"नये दरख़्त कितने भी कहीं भी लगवा लें, न तो उनके बीज और जड़ों की वह गुणवत्ता रहेगी, न उनकी क़ुदरती परवरिश और न ही इन शहीद विरासतों जैसा दीर्घ जीवन!" एक दूसरे वरिष्ठ वृक्ष ने अपना ज्ञान और अनुभव बघारते हुए कह डाला।


इन सब की बातें सुनकर एक घायल सा, गिरने ही वाला एक अन्य पेड़ बोला- "आपकी बात सही है, पर अंधानुकरण करने वालों को समझ में आये, तब न! इन बेचारों का तो कोई चर्चित या विवादित धार्मिक नाम भी नहीं है कि इनके नाम कोई सड़क या इमारत का नाम इनके नाम पर रख कर जनता का तुष्टिकरण किया जा सके!"


"अबे, जनता की मत सोच! अपने भविष्य की और अपने नवोदितों की सोच! जनता तो ऑक्सीजन के सिलेंडरों का भी जुगाड़ करवा लेगी! "


"ऐसा नहीं है भाई! ऑक्सीजन वैसे भी आसानी ने नहीं मिलती भाई! जनता भी तब जागेगी, जब बदलाव के नाम, ज़मीं और ज़र के लिए भी ऐसे 'सामूहिक नरसंहार' क़ुदरत करवायेगी या राजनीति!" पड़ोस के दरख़्त बारी-बारी से इंसानों पर अपनी 'ग़ैर-असरदार भड़ास' निकाल रहे थे।


"अपना भी कोई धर्म होता, तो हर सत्ता भी हमसे चिपकी रहती और हमसे चिपकने वाले अवसरवादी 'दरख़्त-सेवकों' की आवाज़ भी  तुरंत ही सुनी जाती! शुक्र है कि हमारी जड़ें ज़मीन में गहराई तक हैं, लेकिन आसमां पर उड़ने वाले जड़ों को भी कहीं आदतन उखाड़ न फेंकें!" फिर से उस वरिष्ठ पेड़ ने अपने उद्गार ज़ाहिर करते हुए अपने आंसू रूपी पत्ते टपकाये।


(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 611

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 18, 2018 at 11:18pm

एक बार पुनः हार्दिक धन्यवाद आदरणीय राज़ नवादवी साहिब। आपकी रचना ने मेरी रचना के भावव मक़ासिद पर चार चांद लगाये हैं!

Comment by राज़ नवादवी on July 3, 2018 at 5:16am

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब, आदाब. आपका ह्रदय से आभार, आपकी लघुकथा कुछ यूँ मार्मिक थी, कि इन पंक्तियों का श्रेय आपकी कथा को ही जाता है. सादर. 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 3, 2018 at 12:32am

वाह, आपने मेरी रचना के शेष भाव भी मेरी मनपसंद बेहतरीन शैली में बाख़ूबी पूरे कर दिये। विशिष्ट शैली में इस  शैली में मेरी हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब  राज़ नवादवी  साहिब।

Comment by राज़ नवादवी on July 2, 2018 at 5:08pm

वाह बहुत खूब आदरणीय शहज़ाद उसमानी साहब, आपकी मार्मिक लघु कथा पढ़कर निम्न पंक्तियाँ लिखने को प्रेरित हो गया और सोचा आपके साथ साझा करूँ: 

२१२२ २१२२ २१२२ 

"कौन अब सुनता है पेड़ों की व्यथा को,

स्वार्थ से इंसान को फ़ुर्सत कहाँ है

सायबाँ जो थे वो काटे जा रहे हैं 

इस शहादत की कोई हुरमत कहाँ है 

बेज़ुबां, मासूम हैं बच्चों के जैसे 

ख़ुद हिफाज़त की इन्हें ताक़त कहाँ है 

जी रहे हैं मर के मेज़ों कुर्सियों में 

ज़िंदा पेड़ों की कोई क़ीमत कहाँ है? 

मर रहे पत्ते ये चर्चा कर रहे थे 

ये ज़मीं दोज़ख सी है, जन्नत कहाँ है

जितनी वहशत है दिमागे आदमी में 

नस्ले दीगर में भी वो वहशत कहाँ है 

~राज़ नवादवी 

सादर 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 1, 2018 at 12:52am

हमेशा की तरह मेरी इस ब्लॉग पोस्ट पर भी समय देकर प्रोत्साहित करने के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 1, 2018 at 12:35am

अपने विचारों से अवगत कराते हुए प्रोत्साहित करने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय 

नीलम उपाध्याय जो।

Comment by Samar kabeer on June 29, 2018 at 8:47pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Neelam Upadhyaya on June 29, 2018 at 12:55pm

"अपना भी कोई धर्म होता, तो हर सत्ता भी हमसे चिपकी रहती और हमसे चिपकने वाले अवसरवादी 'दरख़्त-सेवकों' की आवाज़ भी  तुरंत ही सुनी जाती! शुक्र है कि हमारी जड़ें ज़मीन में गहराई तक हैं, लेकिन आसमां पर उड़ने वाले जड़ों को भी कहीं आदतन उखाड़ न फेंकें!"

 

बहुत ही सही कहा । सुंदर लघुकथा के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय उसमानी जी ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 28, 2018 at 8:10pm
"सोज़" का हिंदी अर्थ इनटर्नेट शब्दकोशों से : 
सोज़ का हिंदी अर्थ
हिंदी में परिणाम देखें
सोज़
पुल्लिंग
  1. 1.
    जलन, दाह।
  2. 2.
    अथाह कष्ट, वेदना, मनस्ताप।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
13 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"राखी     का    त्योहार    है, प्रेम - पर्व …"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"दोहे- ******* अनुपम है जग में बहुत, राखी का त्यौहार कच्चे  धागे  जब  बनें, …"
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
Wednesday
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service