For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दि 'बेस्ट' या 'वर्स्ट' (लघुकथा)

"स्कूल में दीदी की तरह मुझे भी मेरी मम्मी और टीचर ने सिखाया था कि कब क्या करना है और कब क्या नहीं? लेकिन मम्मी की तरह शायद दीदी भी न बच पायी!" मौक़ा पाते ही पीछे के छोटे से खपरैल वाले कमरे में लालटेन की रौशनी में अपनी आंसुओं को पीती सी हुई उसने बड़ी हिम्मत के साथ आगे लिखा -"मम्मी पर तो पूरे परिवार की ज़िम्मेदारियाँ हैं, सो वह साहब की सब सहती रही, पैसों की जुगाड़ करती रही! लेकिन जब मेरी दीदी ने साहब के 'बेड-टच' की शिक़ायत मम्मी से की, तो यही जवाब मिला था कि "किसी से कुछ मत कहना, अब तो वैसा भी आम हो चला है! अज़ीब से 'हैंड-शेक' से लेकर इशारों के 'बैड-टच' तक ! .... और फिर दीदी अपनी पीड़ा दबाकर रह गयीं थीं। एक दिन मैंने भी साहब को मम्मी को वैसा 'बैड-टच" करते देख लिया था, लेकिन मैंने किसी से तो क्या, अपनी मम्मी और दीदी को भी कुछ न बताया! मन ही मन कुछ ठान लिया था, बस!"


इतना लिखने के बाद उसने फिर से दीदी की वे दो चिट्ठियां पढ़ीं, जो घर पर कहीं से अचानक आज उसके हाथ लगीं थीं, दीदी की ख़ुदक़ुशी करने के बीस दिनों बाद! उसके आंसू अब थम नहीं रहे थे। दीदी को उसकी, छोटे दुधमुंहे भैया की और बापू के भविष्य की चिंता थी!


"लेकिन मुझे ख़ुशी है कि उस बहशी के 'वर्स्ट-टच' के पहले ही मैं टीचर जी के बताए अनुसार उसे चकमा देकर यूं भाग निकली।" धीमे से सिसकते हुए लालटेन की रौशनी कुछ और कम करते हुए उसने आगे लिखा - "... लेकिन मैं 'वैसी' चुप न रहूंगी! मैं आज ही यह चिट्ठी अपनी उन टीचर जी को दूंगी और ऐसी ही चिट्ठियां आगे ज़िम्मेदार अफ़सरों, मंत्रियों तक किसी तरह पहुंंचाउंगी, .. पर आत्महत्या का मौक़ा ही न आने दूंगी, .. हरग़िज़ नहीं सोचूंगी 'वैसा' कुछ!"


कुछ आहट सी सुनकर वह स्टूल के नीचे दुबक गई थी। दरअसल नई भोर होने वाली थी।

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 631

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 15, 2018 at 12:56am

अपनी राय साझा करते हुए मेरी इस रचना के अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीय विजय निकोरे जी और आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज'  साहिब।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 14, 2018 at 7:28pm

बहुत ही सटीक और सार्थक विषय से ओतप्रोत लघुकथा..वाह बहुतखूब आदरणीय

Comment by vijay nikore on June 12, 2018 at 1:46pm

//लेकिन मैं 'वैसी' चुप न रहूंगी! मैं आज ही यह चिट्ठी अपनी उन टीचर जी को दूंगी और ऐसी ही चिट्ठियां आगे ज़िम्मेदार अफ़सरों, मंत्रियों तक किसी तरह पहुंंचाउंगी, .. पर आत्महत्या का मौक़ा ही न आने दूंगी, .. हरग़िज़ नहीं सोचूंगी 'वैसा' कुछ!"//.....

यह पंक्तियाँ बहुत ही ज़ोरदार हैं। आज के माहोल में लड़कियों को, बेटियों को, ऐसे ही निडर होना चाहिए, और होना पड़ेगा।

अच्छी लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 12, 2018 at 12:48pm

आदाब। मेरी इस रचना के मर्म को समझते हुए अनुमोदन और हौसला/ह़िम्मत अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब महेंद्र कुमार साहिब।

Comment by Mahendra Kumar on June 11, 2018 at 7:01pm

यौन हिंसा का प्रतिकार ही उसका वास्तविक इलाज है. इस संदेशपरक लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी. सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तमन्नाओं को फिर रोका गया है
"धन्यवाद आ. रवि जी ..बस दो -ढाई साल का विलम्ब रहा आप की टिप्पणी तक आने में .क्षमा सहित..आभार "
45 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)
"आ. अजय जी इस बहर में लय में अटकाव (चाहे वो शब्दों के संयोजन के कारण हो) खल जाता है.जब टूट चुका…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. सौरभ सर .ग़ज़ल तक आने और उत्साहवर्धन करने का आभार ...//जैसे, समुन्दर को लेकर छोटी-मोटी जगह…"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।  अब हम पर तो पोस्ट…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service