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ग़ज़ल : है अँधेर नगरी चौपट का राज है.

है अँधेर नगरी चौपट का राज है.

हंसों को काला पानी, कौवों को ताज है.

 

आईन का मसौदा ऐसा बुना बुजन नें.

घोड़ों की दुर्गति खच्चर पे नाज है.

 

माज़ी के जो गुलाम हुक्काम हो गए.

शाहाना आज देखो उनके मिज़ाज है.

 

अंगुश्त-कशी का मुजरिम वो बादशाहे इश्क.

मुमताज जिसकी जिन्दा जमुना का ताज है.

 

‘हिन्दुस्तान’ कहता हरदम खरी-खरी.

लफ्जे-दलालती बस ग़ज़ल का रिवाज है.

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 9, 2018 at 2:49pm

ग़ज़ल अच्छी कही है आदरणीय..

Comment by Mohammed Arif on June 8, 2018 at 9:21pm

आदरणीय गंगधर जी आदाब,

                        बेहतरीन प्रयास । हार्दिक बधाई स्वीकार करें तथा गुणीजनों की बातों का संज्ञान लें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 8, 2018 at 7:09pm

आ. भाई गंगाधर जी, अच्छी गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Mahendra Kumar on June 8, 2018 at 1:18pm

बहुत खूब ग़ज़ल हुई है आदरणीय गंगा धर  शर्मा जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. 

1. आपने मंच के नियमानुसार अरकान नहीं लिखे हैं. 

2. //शाहाना आज देखो उनके मिज़ाज है.// क्या इस पंक्ति में "उनके" की जगह "उनका" होना चाहिए?

सादर.

Comment by TEJ VEER SINGH on June 8, 2018 at 10:43am

हार्दिक बधाई आदरणीय गंगाधर जी।बेहतरीन गज़ल।

माज़ी के जो गुलाम हुक्काम हो गए.

शाहाना आज देखो उनके मिज़ाज है.

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