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ग़ज़ल-ग़ालिब की ज़मीन पर

था उन को पता अब है हवाओं की ज़ुबाँ और
उस पर भी रखे अपने चिराग़ों ने गुमाँ और. 
.
रखता हूँ छुपा कर जिसे, होता है अयाँ और 
शोले को बुझाता हूँ तो उठता है धुआँ और
.
ले फिर तेरी चौखट पे रगड़ता हूँ जबीं मैं  
उठकर तेरे दर से मैं भला जाऊँ कहाँ और?
.
इस बात पे फिर इश्क़ को होना ही था नाकाम    
दुनिया थी अलग उन की तो अपना था जहाँ और.
.
आँखों की तलाशी कभी धडकन की गवाही 
होगी तो अयाँ होगा कि क्या क्या है निहाँ और.
.
करते हैं अगर इश्क़ तो बस इश्क़ हैं करते
कुछ काम नहीं करते हैं फिर “नूर” मियाँ और.   
.
निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित 

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Comment by Harash Mahajan on May 13, 2018 at 5:07pm

वाह आदरणीय नूर साहब वाह ।

दिली दाद , हर शेर खूब है सर । 

लाजवाब ।

सादर

Comment by Samar kabeer on May 13, 2018 at 2:27pm

जनाब निलेश 'नूर'साहिब आदाब,मुझको तो जो ग़ज़ल आपने पोस्ट की है उसमें किसी तरमीम की गुंजाइश नहीं लगती,इस बढ़िया ग़ज़ल के लिए शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 13, 2018 at 11:56am

मतले और कुछ शेरों के लिए एक दो विचार और चल रहे हैं.. बताइयेगा कौन से बेहतर हैं..
.
मतला 
जब उन को पता था है हवाओं की ज़ुबाँ और 
फिर क्यूँ रखे अपने भी चिराग़ों ने गुमाँ और
.
उन को था पता अब है हवाओं की ज़ुबाँ और 
क्यूँ फिर भी रखे अपने चिराग़ों ने गुमाँ और
.
शेर 
.
ले फिर तेरी चौखट पे रगड़ता हूँ जबीं मैं  
उठकर तेरे दर से भी भला जाऊँ कहाँ और? 
.
ले फिर तेरी चौखट पे रगड़ते हैं जबीं हम  
उठकर तेरे दर भला जायेंगे कहाँ और? 
.
इस बात पे फिर इश्क़ को होना ही था नाकाम    
उन कीथी अलग  दुनिया तो अपना था जहाँ और.
.
आँखों की तलाशी कभी धडकन की गवाही  
जब होगी, अयाँ होगा कि क्या क्या है निहाँ और.
.
आप सब के सुझाव  आमंत्रित हैं
सादर 

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