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ग़ज़ल नूर की -जलने लगे जो ख्व़ाब सब नैन धुआँ धुआँ रहे

अरकान: नामालूम 
लय: दिल ही तो है न संग-ओ-खिश्त ... या ...आप को भूल जाएं हम इतने तो बेवाफ़ा नहीं ...की तरह 
.
 
जलने लगे जो ख्व़ाब सब नैन धुआँ धुआँ रहे
दिल से तेरे निकल के हम जानें कहाँ कहाँ रहे.
.
रब से दुआ है ये मेरी दिल की सदा है आख़िरी
लब पे उसी का नाम हो जिस्म में गर ये जाँ रहे.   
.
लगते हों आलिशान हम कहने को क़ामयाब हों
खो के तुझे तेरी कसम अस्ल में रायगाँ रहे.
.
तेरी तलब में जाने जाँ ख़ाक हुए वगर्ना हम  
तुझ से मिले थे उस से क़ब्ल कितनों के आसमाँ रहे.      
.
तन्हा तुम्हारे दर्द को रहने नहीं दिया कभी   
दर्द जहाँ जहाँ रहा हम भी वहाँ वहाँ रहे.
.
दैर-ओ-हरम के दौर में कौन दिलों को पूजता
घर थे सभी अँधेरे में रौशनी में मकाँ रहे.         
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 26, 2018 at 10:48am

धन्यवाद आ रोहित जी

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 26, 2018 at 10:47am

आ समर सर,

आप से चर्चा के बाद ही इस बहर पर लिखने की प्रेरणा हुई।

इस पर पहली बार हाथ आज़माया है और अब अभ्यास के लिए एक और कोशिश जारी है।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 26, 2018 at 10:45am

शुक्रिया आ बसंत कुमार जी

Comment by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on March 26, 2018 at 10:24am

जलने लगे जो ख्व़ाब सब नैन धुआँ धुआँ रहे 
दिल से तेरे निकल के हम जानें कहाँ कहाँ रहे.

वाह वाह् ...बहुत खूब

मल्हार

Comment by Samar kabeer on March 25, 2018 at 9:08pm

इस बह्र में मफ़ाइलुन/मफ़ाइलान, की गुंजाईश भी है ।

वैसे मैं जनाब अजय साहिब की तरह माहिर-ए-अरूज़ नहीं हूँ,यही सबब है कि आपको पहले ग़लत अरकान बता दिये थे ।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on March 25, 2018 at 8:06pm

वाह शानदार अशआर निकले हैं, आदरणीय बहुत बहुत बधाई आपको 

तन्हा तुम्हारे दर्द को रहने नहीं दिया कभी   
दर्द जहाँ जहाँ रहा हम भी वहाँ वहाँ रहे. लाजबाब 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 25, 2018 at 7:32pm

धन्यवाद आ. सोमेश कुमार जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 25, 2018 at 7:32pm

धन्यवाद आ. समर सर..
आप से चर्चा के बाद से ही यह   बहर दिमाग़ को कुरेद रही थी ...
आप को पसंद आई तो कहना सफल रहा 
सादर 

Comment by somesh kumar on March 25, 2018 at 3:31pm

तन्हा तुम्हारे दर्द को रहने नहीं दिया कभी   
दर्द जहाँ जहाँ रहा हम भी वहाँ वहाँ रहे. 

अच्छी गजल है ऊपर वाला शे र खास पसंद आया |

रचना पर बधाई |

Comment by Samar kabeer on March 25, 2018 at 2:44pm

जनाब निलेश 'नूर' साहिब आदाब,बहुत उम्दा और शानदार ग़ज़ल से नवाज़ा है, आपने मंच को,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

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