For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - तेरी आँखों में अभी तक है अदावत बाकी

2122 1122 1122 22


तेरी आँखों में अभी तक है अदावत बाकी ।
है तेरे पास बहुत आज भी तूुहमत बाकी ।।

इस तरह घूर के देखो न मुझे आप यहाँ ।
आपकी दिल पे अभी तक है हुकूमत बाकी ।।

तोड़ सकता हूँ मुहब्बत की ये दीवार मगर।
मेरे किरदार में शायद है शराफत बाकी ।।

ऐ मुहब्बत तेरे इल्जाम पे क्या क्या न सहा ।
बच गई कितनी अभी और फ़ज़ीहत बाकी ।।

मुस्कुरा कर वो गले  मिलने  लगा  है  मुझसे ।
कुछ तो होगी ही उसे खास ज़रूरत बाकी ।।


बात होती ही रही आपकी शब भर उनसे ।
रह गई कैसे भला और शिकायत बाकी ।।

वो मुलाकात पे बैठा है लगाकर पहरा ।

तेरे दरबार में कुछ रह गयी रिश्वत बाकी ।।

कौन कहता है वो मासूम बहुत है यारों ।
उसकी फितरत में बला की है शरारत बाकी ।।


इश्क़ फरमाए भला कौन हिमाकत करके ।
आप रखते हैं कहाँ गैर की इज़्ज़त बाकी ।।

मेरे साकी तू अभी और चला दौर यहाँ ।
पास मेरे है अभी और भी दौलत बाकी ।।


--- नवीन मणि त्रिपाठी

मौलिक अ प्रकाशित

Views: 510

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 16, 2018 at 7:08am

अच्छी गजल हुई है ,हार्दिक बधाई आ.

Comment by Naveen Mani Tripathi on January 15, 2018 at 11:12am

आ0 सुरेंद्र नाथ सिंह जी सादर आभार ।

Comment by नाथ सोनांचली on January 15, 2018 at 6:07am

आद0 नवीन मणि जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही, आद0 समर साहब के इस्लाह से उत्तम। समर सहाब को नमन और आपको इस ग़ज़ल पर बधाई

Comment by Samar kabeer on January 13, 2018 at 1:58pm

अब ठीक है ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on January 13, 2018 at 1:51pm

आ0 कबीर सर सादर नमन के साथ आभार । आपका सुझाव अत्यंत महत्वपूर्ण होता है । मैंने सुधार किया है ।

 

Comment by Samar kabeer on January 12, 2018 at 5:40pm

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

मतले के सानी मिसरे में 'तोहमत' को "तुहमत" कर लें ।

दूसरे शैर के ऊला में 'बारहा' की जगह " इस तरह" कर लें ।

तीसरे शैर का सानी बह्र में नहीं है,'ज़मीर' की जगह "किरदार" कर लें ।

5वें शैर का ऊला यूँ करें :-

'मुस्कुरा कर वो गले मिलने लगा है मुझसे"

और सानी में 'कोई' की जगह "उसे" कर लें ।

छटा शैर हटा दें ।

आठवें का ऊला यूँ करें:-

'वो मुलाक़ात पे बैठा है लगा कर पहरा"

और सानी यूँ करें:-

'तेरे दरबार में कुछ रह गई रिश्वत बाक़ी'

Comment by narendrasinh chauhan on January 12, 2018 at 3:57pm

खूब सुन्दर रचना 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"वाह वाह  आदरणीय, आपकी प्रस्तुति पर पुन: आता हूँ।  करूँगा मैं चर्चा सबुर आप…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"वाह वाह  आदरणीय, आपकी इस प्रस्तुति पर पुन: आऊँगा।  शुभातिशुभ"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। बहुत खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया

पलभर में धनवान हों, लगी हुई यह दौड़ ।युवा मकड़ के जाल में, घुसें समझ कर सौड़ ।घुसें समझ कर सौड़ ,…See More
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   वाह ! प्रदत्त चित्र के माध्यम से आपने बारिश के मौसम में हर एक के लिए उपयोगी छाते पर…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत कुण्डलिया छंदों की सराहना हेतु आपका हार्दिक…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, कुण्डलिया छंद पर आपका अच्छा प्रयास हुआ है किन्तु  दोहे वाले…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया छंद रचा…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार सुन्दर कुण्डलिया…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"आती उसकी बात, जिसे है हरदम परखा। वही गर्म कप चाय, अधूरी जिस बिन बरखा// वाह चाय के बिना तो बारिश की…"
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार आदरणीया "
Sunday
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service