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चेह्रा फ़क़त हसीं न हो दिल भी हसीं रहे - तरही ग़ज़ल

221  2121 1221 212


राह- ए- बदी से हम कभी वाक़िफ़ नहीं रहे 
फिर भी तेरे निशाने पे वाइज़ हमीं रहे     

कर ग़ौर अपने तौर-तरीकों पे एक बार
चहरा फ़क़त हसीं न हो दिल भी हसीं रहे 

दिल के दियार की ज़रा रौनक बहाल हो
गर इस मकाँ में आप सा कोई मकीं रहे

कर इश्क या जगा दे तसव्वुफ़ तेरी रज़ा
ऐ दिल तेरे खिलाफ़ कभी हम नहीं रहे 


अब भी यहीं हैं फूल कली चाँद सब मगर
दिलकश तुम्हारे बाद ये उतने नहीं रहे

दिल के फ़लक पे ख़ूब सितारे अयाँ हैं पर
बनके यहाँ पे चाँद हमारा तुम्हीं रहे


सब है ख़ुदा के हाथ में सच है यही मगर 
खुद पर भी ऐ बशर तुझे कुछ तो यकीं रहे 

उलझा लिया है जीस्त के फ़ित्नों ने इस तरह 
" ऐ इश्क़ हम तो अब तेरे क़ाबिल नहीं रहे"

------------------------------------------------------------

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Samar kabeer on December 7, 2017 at 9:46pm

जनाब गजेन्द्र जी आदाब,बहुत उम्दा तरही ग़ज़ल हुई,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

दूसरे शैर के ऊला मिसरे पर जनाब अजय तिवारी जी का सुझाव उत्तम है,और सानी मिसरे में 'चेह्रा' को "चहरा" कर लें ।

तीसरे शैर के ऊला मिसरे में सही शब्द है "दियार" देखियेग ।

आपकी जानकारी के लिये बता रहा हूँ कि

Comment by Ajay Tiwari on December 7, 2017 at 1:41pm

आदरणीय गजेन्द्र जी,

उम्दा ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाईयाँ.

'कर ग़ौर अपने तौर-तरीकों मिज़ाज पर' को अगर ठीक लगे तो 'कर ग़ौर अपने तौर-तरीकों पे एक बार'  कर सकते हैं.

सादर

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