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"एक क़तरा था समंदर हो गया हूँ"

2122 2122 2122

एक क़तरा था समंदर हो गया हूँ।
मैं समय के साथ बेहतर हो गया हूँ।।

कल तलक अपना समझते थे मुझे जो।
उनकी ख़ातिर आज नश्तर हो गया हूँ।।

मैं बयां करता नहीं हूँ दर्द अपना।
सब समझते हैं कि पत्थर हो गया हूँ।।

ज़िन्दगी में हादसे ऐसे हुए कुछ।
मैं जरा सा तल्ख़ तेवर हो गया हूँ।।

जख़्म दिल के तो नहीं अब तक भरे हैं।
हां मगर पहले से बेहतर हो गया हूँ।।


सुरेन्द्र इंसान

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by surender insan on December 18, 2017 at 9:05am

  बहुत बहुत शुक्रिया आपका मोहतरम तस्दीक अहमद खां साहब जी । बहुत बहुत आभार जी।

Comment by surender insan on December 18, 2017 at 9:04am

   बहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय अजय तिवारी जी । बहुत बहुत आभार जी।

Comment by surender insan on December 18, 2017 at 9:02am

  बहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय काली प्रसाद जी । बहुत बहुत आभार जी।

Comment by surender insan on December 18, 2017 at 9:01am

  बहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय समर कबीर साहब जी ।जी सुधार कर दिया है जी।

बहुत बहुत आभार जी।

Comment by surender insan on December 18, 2017 at 9:00am

  बहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय मनोज जी । बहुत बहुत आभार जी।

Comment by surender insan on December 18, 2017 at 8:58am

बहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी । बहुत बहुत आभार जी।

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 5, 2017 at 8:09pm

जख़्म दिल के तो नहीं अब तक भरे है।
हां मगर पहले से बेहतर हो गया हूँ।

खूबसूरत पंक्तियाँ! बधाई!

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on December 5, 2017 at 7:36pm

जनाब सुरेन्द्र साहिब ,सुन्दर ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें

Comment by Ajay Tiwari on December 4, 2017 at 3:56pm

आदरणीय सुरेन्द्र जी,

अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाईयाँ.

'जख़्म दिल के तो नहीं अब तक भरे है' को 'जख्म दिल के भर नहीं याये हैं अब तक' या 'जख्म अब तक भर नहीं याये हैं दिल के ' किया जा सकता है.

सादर 

Comment by Kalipad Prasad Mandal on December 4, 2017 at 12:11pm

आ सुरेन्द्र जी ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ  है,बधाई स्वीकार करें ।

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