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ग़ज़ल- रातें हुईं पहाड़ बताओ मैं क्या करूँ।

बह्र- मफऊल फाइलात मफाईल फाइलुन

रातें हुईं पहाड़ बताओ मैं क्या करूँ।
वो दिल गई उजाड़ बताओ मैं क्या करूँ।

इज़हारे इश्क जो किया तो उसने गाल पर,
मारे हैं ताड़ ताड़ बताओ मैं क्या करूँ।

पल्लू से उसके फिर से मैं बँध जाऊँ दोस्तो,
कोई नहीं जुगाड़ बताओ मैं क्या करूँ।

क्या दिन थे वो हँसीन कभी छत पे राह में
होती थी छेड़छाड़ बताओ मैं क्या करूँ।

मेरे खिलाफ उसने कटा दी एफआईआर,
जाना है अब तिहाड़ बताओ मैं क्या करूँ।

तन्हा हूँ और सिर्फ है तन्हाई मेरे साथ,
गायब है भीड़भाड़ बताओ मैं क्या करूँ।

उस बेवफा की याद में रोता हूँ रात दिन,
अब मारकर दहाड़ बताओ मैं क्या करूँ।

आया खराब वक्त तो कमबख्त वक्त ने,
मुझको दिया पछाड़ बताओ मैं क्या करूँ।

मैंने तो तेरे इश्क में सब कुछ लुटा दिया,
गिरवीं है माँस हाड़ बताओ मैं क्या करूँ।

हड़तालियों ने खौफ से अपने ही आप जब,
तम्बू लिया उखाड़ बताओ मैं क्या करूँ

आया जो रात देर से बीवी ने क्लास ली,
जमकर पड़ी लताड़ बताओ मैं क्या करूँ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Ajay Tiwari on December 5, 2017 at 3:19pm

आदरणीय राम अवध जी,

'मेरे खिलाफ उसने कटा दी एफआईआर' की बह्र पर आदरणीय अफ़रोज़ साहब और आदरणीय समर साहब की बात जायज़ है. मिसरे को किसी और तरह से कहना बेहतर होगा.

सादर  

Comment by Ajay Tiwari on December 5, 2017 at 2:51pm

आदरणीय राम अवध जी,

ग़ज़ल में हास्य पर कोई एतराज कभी नहीं रहा. हास्य ग़ालिब के यहाँ भी है मीर के यहाँ भी.  

सादर 

Comment by Samar kabeer on December 5, 2017 at 2:48pm

//तख्ती लिखने के अनुसार नहीं की जाती है ।हम जैसा पढ़ते हैं हमारे कान जैसा सुनते हैं उसी अनुसार बह्र का निर्धारण होता है ।//

ये तो आपने बिल्कुल ग़लत बात कह दी,आपने शायद वो मिसाल नहीं सुनी कि'सो बका एक लिखा'जनाब अफ़रोज़ साहिब ने आपका जो शैर बेबह्र बताया है,वो वाक़ई बह्र में नहीं है,आपके जवाब से मुझे बहुत निराशा हुई ।

Comment by Afroz 'sahr' on December 4, 2017 at 9:08pm
आदरणीय राम अवध जी आदाब आपकी ग़ज़ल के अर्कान के मुताबिक ही मैने प्रतिक्रिया दी थी । फिर भी अगर मुझसे कहीं कोई ग़लती हुई है तो में क्षमा का प्रार्थी हूँ। परंतू एक निवेदन है की । आपका मिसरा "मेंरे ख़िलाफ़ उसने कटा दी एफआईआर" की तक्ती़अ ,,,अर्कान ,मफ़ऊलु, फ़ाइलातु, मफ़ाईलु, फ़ाइलुन के अनुसार करके बताएं जिससे की मुझ तालिब ए इल्म की मालूमात में मज़ीद इज़ाफ़ा हो सके। सादर,,
Comment by Ram Awadh VIshwakarma on December 4, 2017 at 9:07pm

आदरणीय अजय तिवारी जी आपने जो मेरा हौसला बढ़ाया इसके लिये मैं आपका आभारी हूँ। अगर कविता में नौ रस हैं तो ग़ज़ल विधा में हास्य रस भी आ जाये तो ऐतराज क्यों। सादर पुन: शुक्रिया।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on December 4, 2017 at 9:02pm

आदरणीय कालीपाद प्रसाद जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on December 4, 2017 at 8:59pm

आदरणीय कुशक्षत्रप साहब जी सादर आभार । प्रयास करूँगा रदीफ बदलने का।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on December 4, 2017 at 8:57pm

आदरणीय मनोज कुमार जी सादर आभार ग़ज़ल सराहना के लिये।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on December 4, 2017 at 8:55pm

आदरणीय मोहम्मद आरिफ सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on December 4, 2017 at 8:54pm

आदरणीय समर कबीर साहब जी सादर आदाब। आपके अमूल्य सलाह पर मैं विचार करूँगा। लेकिन निवेदन भी है कि जो सहज में ग़ज़ल हो जाये उसमें सरलता होती है। जबरदस्ती एक खास पैटर्न पर खास साँचे में लिखना मेरे विचार से ठीक नहीं होता है। फिर भी आपके सुझाव के अनुसार मैं कोशिश करूँगा। आपका बहुत बहुत शुक्रिया आभार।

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