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गर कुँवारे ही मरे क्या ताज्रीबा ले जाएँगे
साथ बस मैरीज ब्योरो का पता ले जाएँगे

रोज ही मिलते रहे कपड़ो पे लम्बे बाल जो
इक न इक दिन आप तो घर से निकाले जाएँगे

बात दिल की कह न पाए वक़्त पर जो आप तो
दूसरे ही उनको फिर दुल्हन बना ले जाएँगे

करके गलती आँख से आँसू गिराना सीख लो
मार से बेगम की ये आँसू बचा ले जाएँगे

मेकअप से खा गए धोका अगर जो आप भी
फिर तो लैला की जगह मम्मी भगा ले जाएँगे

खटमलों को जाँच लो सोने से पहले नाथ जी
ये वगरना वस्ल का सारा मज़ा ले जाएँगे

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by नाथ सोनांचली on November 21, 2017 at 1:15pm
आद0 तस्दीक अहमद खान साहब, सादर अभिवादन। पुनश्च बहुत बहुत आभार आपका, सादर
Comment by नाथ सोनांचली on November 21, 2017 at 1:13pm
आद0 सलीम साहब सादर अभिवादन। ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और बेहतरीन प्रतिक्रिया का आभार। आपके सुझाव पर अवश्य विचार करूँगा।
Comment by Mohammed Arif on November 21, 2017 at 11:57am
आदरणीय सुरेंद्रनाथ जी आदाब, बेहतरीन मज़हिया ग़ज़ल । बाक़ी गुणीजन अपनी राय दे चुके हैं ।हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on November 21, 2017 at 10:48am
जनाब सुरेन्द्र नाथ साहिब ,आप तकती "मेक-अप "की (212) की अलग अलग करके कर रहे हैं जब कि उसे एक शब्द मान कर "मेकअप" (22) होनी चाहिए । मिसरे में अगर और जो का इस्तेमाल एक साथ हुआ है ,जो मिसरे की सुंदरता खत्म कर रहा है --सादर
Comment by SALIM RAZA REWA on November 21, 2017 at 9:03am
आ. सुरेंद्र नाथ जी ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए  बधाई,
तस्दीक साहिब सही कह रहे हैं..
आ. आप मेकअप को 212 बाँध रहे हैं जबकि  मेक अप 22 है अगर में को  खींचते हैं तो मेकअप नहीं :मेकप: बनेगा जो सही है और 22 का ही है, गौर करिएगा.. सादर
Comment by नाथ सोनांचली on November 20, 2017 at 9:38pm
आद0 तस्दीक अहमद खान साहब आपने बताया कि 5वे शैर का ऊला मिसरा बह्र में नहीं है।

मेकअप से खा गए धोका अगर जो आप भी
मेकअप से 2122
खा गए धो 2122
का अगर जो 2122
आप भी 212
फिर बेबहर कैसे? स्पष्ट करें तो हमे समझने में आसानी होगी।
Comment by नाथ सोनांचली on November 20, 2017 at 9:30pm
आद0तस्दीक अहमद खान साहब सादर अभिवादन, आपकी ग़ज़ल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन का हृदय तल से आभार।

आपका सुझाव उत्तम है। तजरबा शब्द पर मुझे संशय है क्योकि मैंने शब्दकोश में इसे ताज्रीबा लिखा पाया था। पुनश्च आभार आपका
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on November 20, 2017 at 9:24pm
जनाब सुरेन्द्र नाथ साहिब ,सुन्दर ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं। सही शब्द "तजरबा" है शेर 5 का उला मिसरा बह्र में नहीं है ।"खा गए मेक अप से धोका आप उल्फ़त में अगर "सही लगे तो तब्दील कर लीजियेगा
Comment by नाथ सोनांचली on November 20, 2017 at 9:22pm
आद0 रामअवध विश्वकर्मा जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल पर उपस्थिति और सुखनवाजी का हृदय तल से आभार।
Comment by Ram Awadh VIshwakarma on November 20, 2017 at 7:47pm
वाह बहुत ही खूबसूरत हास्य ग़ज़ल है बधाई आदरणीय कुशक्षत्रप जी

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