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आप से क्या मुहब्बत हुई

आप से क्या मुहब्बत हुई ।
रात भी अब कयामत हुई ।।

जब भी आए तेरे दर पे हम ।।
दुश्मनों की इजाफ़त हुई ।।

हुस्न था आपका कुछ अलग ।
आप ही की हुकूमत हुई ।।

यूँ संवरते गए आप भी ।
हुस्न की जब इनायत हुई ।।

अब चले आइये बज्म में ।
आपकी अब जरूरत हुई ।।

जाइये रूठ कर मत कहीं ।
आपसे कब अदावत हुई ।।

है तकाजा यहां उम्र का ।
आईनों की हिदायत हुई ।।

कुछ अदाएं मचलने लगीं ।
आंख से जब हिमाकत हुई ।।


चल दिये तोड़कर दिल मेरा ।
कौन सी ये शराफ़त हुई ।।

इक नज़र क्या गई आप तक ।
दुश्मनों तक शिकायत हुई ।।

टूटकर हम बिखरते रहे ।
आप से कब रियायत हुई ।।

इश्क़ में जंग कर ली फतह ।
जिंदगी अब रियासत हुई ।।

नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on November 12, 2017 at 5:13pm
संख्या बढ़ाने के लिए शब्द है "इज़ाफ़ा"
Comment by Samar kabeer on November 12, 2017 at 5:09pm
'दुश्मनों की इज़ाफ़त हुई'
आपने 'इज़ाफ़त'का ये अर्थ लिया है कि दुश्मनों की तादाद(संख्या)बढ़ गई, जबकि "इज़ाफ़त"का सही अर्थ है,निस्बत,लगाव,मेल,एक कलमे से दूसरे कलमे का लगाव जो फ़ारसी और अरबी अल्फ़ाज़ में मज़ाफ़ के नीचे 'ज़ेर'लगाने को कहते हैं ।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 12, 2017 at 9:20am
हार्दिक बधाई।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 11, 2017 at 11:59am

आदरणीय नवीन मणि जी इस शानदार रचना पर हार्दिक बधाई सादर 

Comment by Naveen Mani Tripathi on November 10, 2017 at 5:15pm
आ0 कबीर सर इज़ाफ़त शब्द में मुझे अत काफिया
नज़र आता है । काफ़िया कैसे गलत है कृपया शंका को दूर करने की कृपा कीजिये ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on November 10, 2017 at 5:08pm
आ0 गुरुप्रीत सिंह साहब सप्रेम आभार
Comment by Naveen Mani Tripathi on November 10, 2017 at 5:07pm
आ0 मुहम्मद आरिफ साहब सादर आभार ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on November 10, 2017 at 5:06pm
आ0 अफरोज शहर साहब सादर आभार ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on November 10, 2017 at 5:05pm
आ0 कबीर सर को सादर नमन । अभी ठीक करता हूँ सर जी ।
Comment by Gurpreet Singh jammu on November 10, 2017 at 3:10pm

आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी ,, बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने ,, बधाई स्वीकार करें इस ग़ज़ल के लिए 

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