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बेसबब यूँ मुस्कुराना बस करो

2122 2122 212
हो गई पूरी तमन्ना बस करो ।
बेसबब यूँ मुस्कुराना बस करो ।।

फिक्र किसको है यहां इंसान की ।
फिर कोई ताज़ा बहाना , बस करो ।।

होश में मिलते कहाँ मुद्दत से तुम।
इस तरह से दिल लगाना, बस करो ।।

बेवफा की हो चुकी खातिर बहुत ।।
राह में पलकें बिछाना, बस करो ।।

घर मे कंगाली का आलम देखिये ।
गैर पर सब कुछ लुटाना ,बस करो ।।

रंजिशों से कौन जीता इश्क़ में।हार कर अब तिलमिलाना, बस करो ।।


कर गई दीवानगी घायल उसे ।
वार अपना क़ातिलाना ,बस करो।।

देख ली मेरी लियाकत जंग में ।
रोज मुझको आजमाना, बस करो ।।

साफ़ कह दो अब नहीं रिश्ता रहा।
जिंदगी भर का फ़साना ,बस करो ।।

सच को सुनने का रखो तुम हौसला ।
आइनों से मुहँ छुपाना बस करो ।।

गलतियां कुछ तो रही होंगी तेरी ।
बे गुनाहों पर निशाना, बस करो ।।

---नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Naveen Mani Tripathi on November 12, 2017 at 7:19pm
आ0 कबीर सर विशेष आभार के साथ नमन ।
Comment by Samar kabeer on November 12, 2017 at 5:32pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
तीसरे शैए के सानी में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखिये ।
आख़री शैर में शुतरगुर्बा दोष है,देखिये ।

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