For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जिधर देखो उधर मेहनत कशों की - सलीम रज़ा रीवा

1222 1222 1222 1222

-

जिधर देखो उधर मिहनत  कशों की ऐसी हालत है-

ग़रीबों  की  जमा अत पर अमीरों की क़यादत है

-

मुक़द्दर ले के आया है न जाने कैसी बस्ती में-

नज़र आती नहीं मुझको किसी के दिल में चाहत है

-

कहीं दहशत कहीं अस्मत फरोशी है कहीं नफ़रत-

ज़माने में जिधर देखो क़ियामत ही क़ियामत है

-

ग़रीबों के घरों में रहबरों देखो कभी जा कर-

वहां खुशियां नहीं हैं सिर्फ फ़ाक़ा और गुरबत है

-

न जाने किस शनावर के मुक़द्दर में लिखा मोती-

समुन्दर में भला मालूम किस को कितनी दौलत है

-

रज़ा जो मिल नहीं पाया न कर उसका कोई शिकवा-

ये क्या कम है तुझे शुहरत मिली उसकी बदौलत है

-

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 916

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SALIM RAZA REWA on November 8, 2017 at 8:33am
आ.लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी,
आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया.
Comment by SALIM RAZA REWA on November 8, 2017 at 8:32am
जनाब तस्दीक साहिब,
ग़ज़ल पर आपकी नवाज़िश के लिए आपका दिली शुक्रिया.
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 4, 2017 at 6:14am
आ. भाई सलीम जी, बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on November 3, 2017 at 4:00pm
जनाब सलीम साहिब ,उम्दा ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
Comment by SALIM RAZA REWA on November 2, 2017 at 9:20pm

"जनाब froz 'sahr'  साहब ,

ग़ज़ल में आपकी शिरक़त और हौसला अफ़जाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।"

Comment by SALIM RAZA REWA on November 2, 2017 at 8:08pm

आली जनाब समर साहब,
आपकी ग़ज़ल पर नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया,
आपकी मशविरे की तरफ़ मुखातिब होते हैं,
..
1..जनाब ये आपकी बात एकदम सही है शोहरत, मेहनत नहीं इसे मिहनत, शुहरत लिखते हैं ,
दोनों अरबी के अल्फाज़ है.
और अरबी में इसे मिहनत, शुहरत ही लिखते हैं आपकी ये बात तस्लीम है
2..पर सर जहाँ तक हमें मालूम है कोई भी शायर अपने ग़ज़ल में सिर्फ़ शोहरत,मेहनत का ही इसत्माल करते हैं
क्यूंकि ये अल्फाज़ ही आम हैं,
जनाब हमने शुहरत, मिहनत का इस्तेमाल ग़ज़ल में कहीं नहीं पढ़ा इसलिए जानते हुए भी हम लिख न सके इसके लिए माफ़ी चाहता हूँ
3. चूँकि हमे दोनों अल्फाज़ पता थे इसलिए हमने दोनों अल्फाज़ को 22 के वज़न में ही बांधा है.अगर ऐसा ही लिखा रहने दें तो ...
आपकी महब्बत और मशविरे का तलबगार..

Comment by Afroz 'sahr' on November 2, 2017 at 12:03am
जनाब सलीम रज़ा साहिब बहुत अच्छी ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद पेश करता हूँ,,,
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 1, 2017 at 9:58pm
अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय..आदरणीय समर जी की टिप्पड़ी से थोडा ज्ञानबर्धन भी हो गया..सादर
Comment by Samar kabeer on November 1, 2017 at 9:35pm
जनाब सलीम रज़ा साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
मतले के ऊला मिसरे में 'मेहनत'शब्द ग़लत है,इसका वज़्न 212 हो रहा है,जबकि सही शब्द है "मिहनत"जिसका वज़्न है 22।
इसी तरह मक़्ते के सानी मिसरे में 'शोहरत'ग़लत है,इसका वज़्न आपने लिया है212 जबकि सही शब्द है "शुहरत"जिसका वज़्न है22,देखियेगा ।
Comment by SALIM RAZA REWA on November 1, 2017 at 8:30pm

जनाब आशुतोष मिश्रा जी ,
ग़ज़ल में आपकी शिरक़त और हौसला अफ़जाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक स्वागत आपका और आपकी इस प्रेरक रचना का आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत दिनों बाद आप गोष्ठी में…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी। रचना पर कोई टिप्पणी नहीं की। मार्गदर्शन प्रदान कीजिएगा न।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"सीख ...... "पापा ! फिर क्या हुआ" ।  सुशील ने रात को सोने से पहले पापा  की…"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आभार आदरणीय तेजवीर जी।"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।बेहतर शीर्षक के बारे में मैं भी सोचता हूं। हां,पुर्जा लिखते हैं।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। चेताती हुई बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। लगता है कि इस बार तात्कालिक…"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
" लापरवाही ' आपने कैसी रिपोर्ट निकाली है?डॉक्टर बहुत नाराज हैं।'  ' क्या…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। उम्दा विषय, कथानक व कथ्य पर उम्दा रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। बस आरंभ…"
Friday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service