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लम्बे रदीफ़ की ग़ज़ल (कज़ा मेरी अगर जो हो)

गुणीजनों के सुझाव के हेतु।
काफ़िया=आ
रदीफ़= *मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खातिर*
1222×4

खता मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खातिर,
सजा मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खातिर।

वतन के वास्ते जीना, वतन के वास्ते मरना,
वफ़ा मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खातिर।

नशा ये देश-भक्ति का, रखे चौड़ी सदा छाती,
अना मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खातिर।

रहे चोटी खुली मेरी, वतन में भूख है जब तक,
शिखा मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खातिर।

गरीबों के सदा हक़ में, उठा आवाज़ जीता हूँ,
सदा मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खातिर।

रखूँ जिंदा शहीदों को, निभा किरदार मैं उनका,
अदा मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खातिर।

मेरी मर्जी तो ये केवल, बढ़े ये देश आगे ही,
रज़ा मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खातिर।

रहे रोशन सदा सब से, वतन का नाम हे भगवन,
दुआ मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खातिर।

चढ़ातें सीस माटी को, 'नमन' वे सब अमर होते,
कज़ा मेरी अगर जो हो, तो हो इस देश की खातिर।


मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 22, 2017 at 6:15pm
आ0 कालीपद जी आपका हृदय तल से आभार।
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 22, 2017 at 6:13pm
आ0 समर कबीर जी मेरे इस प्रयास को आपके आशीर्वचन मिले रचना कृतार्थ हुई। आपका बहुत आभार।
Comment by Kalipad Prasad Mandal on October 22, 2017 at 2:56pm

आदरणीय बासुदेव अग्रवाल जी  , बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है | इस नया प्रयोग के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by Samar kabeer on October 22, 2017 at 2:46pm
जनाब बासुदेव अग्रवाल'नमन'जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 22, 2017 at 2:12pm
आ0 मोहम्मद आरिफ जी इसी मंच पर आ0 सलीम रजा जी और आ0 तस्दीक अहमद जी की ऐसी गज़लें पेश हो चुकी है। यहीं से प्रेरणा ले कर यह प्रयास किया है। आपसे गज़ल को मुक्त कण्ठ से प्रशंसा मिली मेरा यह प्रयास सार्थक हुआ। आपका हृदय से आभार।
Comment by Mohammed Arif on October 22, 2017 at 2:01pm
आदरणीय वासुदेव जी आदाब, इन दिनों ओबीओ का मंच ख़ासतौर से ग़ज़लगो नया-नया प्रयोग 'लंबी रदीफ और सबसे छोटा काफिआ और सबसे लंबी रदीफ' चल रहा है । ओबीओ मंच के लिए यह सुखद आश्चर्य की बात है । इस तरह के प्रयोग होते रहना भी चाहिए । आपकी यह ग़ज़ल भी बहुत ही बेहतरीन और लाजवाब है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

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"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी सहभागिता के लि हार्दिक आभार और बधाइयाँ  कृपया आदरणीय अशोक भाई के…"
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