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दबी हर बात जिंदा क्यूँ करें हम (ग़ज़ल)

बह्र -मुफाईलुन मुफाईलुन फ़ऊलुन

तुम्हारा राज़ इफ़शा क्यूँ करें हम|
दबी हर बात जिन्दा क्यूँ करें हम||

न हो जो भाग्य को यारों गवारा,
फिर उसकी ही तमन्ना क्यूँ करें हम||

जगाती दर्द हो जो बात दिल में,
उसी का रोज चर्चा क्यूँ करें हम||

लगा दे आग जो सारे जहाँ में ,
कोई भी ऐसी रचना क्यूँ करें हम||

जिसे करके रहे अफ़सोस मन में,
कोई भी काम ऐसा क्यूँ करें हम||

बहन माँ बेटियाँ तुहफ़ा ख़ुदा का,
उन्ही पे कोई हिंसा क्यूँ करें हम||

बमुश्किल चार दिन की ज़िंदगी में,
महब्बत छोड़ झगड़ा क्यूँ करें हम||

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by नाथ सोनांचली on September 18, 2017 at 1:05pm
आद0 नीलेश भाई जी सादर अभिवादन, जी यह जान साहब के जमीन पर ही कही गयी ग़ज़ल है। आपकी बधाई का शुक्रिया , सादर
Comment by नाथ सोनांचली on September 18, 2017 at 1:03pm
आद0 शिज्जू शकूर साहब सादर अभिवादन, ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और उत्साहवर्द्धन का शुक्रिया।
Comment by नाथ सोनांचली on September 18, 2017 at 12:55pm
आद0 गिरिराज भाई जी सादर प्रणाम, आपकी प्रशंसा से अभिभूत हूँ, बहुत बहुत आभार आपका।
Comment by SALIM RAZA REWA on September 18, 2017 at 12:34pm
आदरणीय सुरेन्द्र भाई , बहुत अच्छी गज़ल कही है , मुबारकबाद कुबूल कीजिये ।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 18, 2017 at 11:47am

बहुत ख़ूब... अपने मंच पर जौन साहब का तरही मिसरा दिया गया था ..शायद वही ज़मीन चुनी आपने..
बहुत बहुत बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 18, 2017 at 11:03am

अच्छी गज़ल हुई है आ. सुरेन्द्रनाथ जी बहुत बहुत बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 18, 2017 at 10:54am

आदरणीय सुरेन्द्र भाई , बहुत अच्छी गज़ल कही है , मुबारकबाद कुबूल  कीजिये ।

तोफा को तुहफा कर लीजियेगा ।

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