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मापनी  २२ २२ २२ २ 

इतनी ज्यादा बात न कर
वादों की बरसात न कर

टूट न  जाए नाजुक दिल,
उससे भीतरघात  न कर

ख्यात न हो, कुछ बात नहीं,
पर खुद को कुख्यात न कर

मानव तो बस मानव है,
ऊंची नीची  जात न कर

खुलकर गले न मिल पाए,
पैदा  वो  हालात  न कर

पास बैठ  सुलझा  मुद्दे
थप्पड़ घूँसा लात न कर

भारत, भारत ही अच्छा,

संस्कृति काआयात  न कर

 

"मौलिक एवं अप्रकाशित "

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Comment by Samar kabeer on September 17, 2017 at 10:43pm
जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
'संस्कार आयात न कर'
ये मिसरा लय में नहीं है,देखियेगा ।
Comment by Niraj Kumar on September 17, 2017 at 7:05pm

आदरणीय बसंत जी,

एक बेहतर लहजे के साथ खूबसूरत ग़ज़ल हुई है. दाद के साथ मुबारकबाद.

सादर 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 17, 2017 at 4:59pm

आभार  आदरणीय गिरिराज भंडारी  जी आपकी हौसला अफजाई का 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 17, 2017 at 1:45pm

आदरनीय बसंत भाई , खूब सूरत गज़ल कही है छोटी बहर मे , बधाई स्वीकार करें ।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 16, 2017 at 7:20pm

आदरणीय Afroz 'sahr' जी आपकी हौसला अफजाई को सादर नमन, ध्यानाकर्ष्ण हेतु आभार, अरकान हैं २२ २२ २२ 2, मूल रचना को भी एडिट कर देता हूँ 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 16, 2017 at 7:19pm

आदरणीय शिज्जु "शकूर"जी आपकी हौसला अफजाई को सादर नमन 

Comment by Afroz 'sahr' on September 16, 2017 at 2:50pm
आदरणीय बसंत जी आदाब अच्छी ग़ज़ल है! परंतू आपने मंच के नियमानुसार अर्कान नहीं लिखे हैं! सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 16, 2017 at 2:02pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है आ. बसन्त जी बधाई

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