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१२२ १२२ १२२ १२२

नहीं है यहाँ पर मुझे जो बता दे
सही रास्ता जो मुझे भी दिखा दे

ये कैसी हवा जो चली है यहाँ पर
परिंदा नहीं जो पता ही बता दे

चले थे कभी साथ साथी हमारे
पुरानी लकीरों से यादें मिटा दें

कभी तो मिलेगी ज़िन्दगी पुरानी
वफ़ा की ज्वाला यहाँ भी जला दे

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by राज़ नवादवी on August 29, 2017 at 5:32pm
आदरणीया कल्पना जी, सराहनीय प्रथम प्रयास के लिए दिली मुबारकबाद. सुन्दर कोशिश की गई है.

चले थे कभी साथ साथी हमारे
पुरानी लकीरों से यादें मिटा दें

बहुत खूब. सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 28, 2017 at 9:55pm

आदरनीया कल्पना जी , प्रथम प्रयास सराहनीय है , बधाई स्वीकार करें । बाक़ी गुणि जनों की राय पर अमल कीजियेगा ।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on August 28, 2017 at 7:58pm
सराहनीय प्रयास के लिये बधाई।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 28, 2017 at 9:17am
खूबसूरत गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on August 27, 2017 at 7:57pm
मुहतर्मा कल्पना साहिबा ,अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें ।आख़री शेर में रब्त की कमी और उला मिसरा बह्र में नहीं है । अगर सही लगे तो यूँ कर सकते हैं ।
तअस्सुब की आंधी तेरे सामने है --वफ़ा का दिया कल्पना तू जला दे।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 27, 2017 at 4:54pm

धन्यवाद् आदरणीय बृजेश कुमार जी |

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 27, 2017 at 4:53pm

धन्यवाद् आदरणीय संतोष जी |

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 27, 2017 at 4:53pm

धन्यवाद् आदरणीय सलीम रज़ा जी |

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 27, 2017 at 4:52pm

धन्यवाद् आदरणीय नरेन्द्रसिंह जी |

Comment by santosh khirwadkar on August 27, 2017 at 3:54pm
वह्ह्ह्ह वाह ताई , क्या ख़ूब !!!

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