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बदल रहा है इतिहास (लघुकथा)

" यार ,वहां जो चर्चा चल रही है , उसके बारे में कोई जानता है क्या ?" कैंटीन में बैठे हुए करण ने अपने साथियों से पूछा |"

" , क्या वही चर्चा जिसमें इतिहास की बातें चल रही हैं ? सुना है वहां भारत में पहले कौन आया इस विषय पर चर्चा हो रही है |" साथी मित्र ने उत्तर दिया |

दूसरा बोला , ", मुझे तो बचपन से लगता रहा है कि, उफ्फ् कितनी सारी तारीखें , कितने देश और उनके साथ जुड़ा उनका इतिहास | "

" जो भी हो पर यह है तो बड़ा दिलचस्प , समय बदला तारीखें बदली , राजा महाराजा बदले , राज करने के तरीके बदले , कितना कुछ लिखा गया है इतिहास के पन्नो पर | लोगों की लडाई , उनके संघर्ष कितना कुछ है इसमें | "  साथी मित्र  बोला |

"सच कहे रहे हो तुम , बहुत कुछ बदलता रहा है , समय के साथ जाने कितनी बातें दफ़न हो गयीं है , जिसने प्रयास कर लिख दिया वो आज इतिहास बन दिखाई दे रहा है , यह भी निश्चित है , जाने और कितने राज़ छुपे होंगे अभी | करण ने कहा |

" हाँ करण , सही कह रहे हो समय के साथ इतिहास भी बदला , आज देखो न क्या हाल कर दिया है देश का इन साधु बाबाओं ने | आये दिन कोई न कोई बखेड़ा खड़ा कर देते हैं | और बेक़सूर बेचारे बेवजह मारे जाते हैं | " साथी ने कहा |

इन सब की बातें कैंटीन बॉय सुन रहा था , उसने मासूमियत से पूछा ," क्यों सर क्या इतिहास भी बदल रहा है ? अब इतिहास के पन्नों पर इन बाबाओं का नाम दर्ज़ होगा ? "

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 2, 2017 at 9:34am
धन्यवाद आदरणीय समर भाई जी ।
Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on September 2, 2017 at 7:57am

बहुत अच्छी लघुकथा कही है आदरणीया कल्पना दी| अंतिम पंक्ति का कटाक्ष अपना प्रभाव छोड़ने में सक्षम है| सादर बधाई स्वीकार करें इस सृजन हेतु|

Comment by Samar kabeer on September 1, 2017 at 9:27pm
बहना कल्पना भट्ट जी आदाब,बहुत अच्छी लगी आपकी लघुकथा,प्रयास करती रहें,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 1, 2017 at 4:07pm

धन्यवाद् आदरणीय शहजाद भाई | 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 1, 2017 at 4:06pm

धन्यवाद् आदरणीय फूल सिंह जी |

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 31, 2017 at 4:55pm
बहुत ही समसामयिक विचारोत्तेजक विषय पर रचना के लिए सादर हार्दिक बधाई आदरणीय कल्पना भट्ट जी। अंतिम कुछ पंक्तियां बहुत बढ़िया हैं जो रचना का मुख्य भाग हैं। बाकी भाग में कहीं-कहीं मुझे भावों की पुनरावृत्ति समझ में आ रही है।
Comment by PHOOL SINGH on August 31, 2017 at 4:03pm

बेहतरीन

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