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ग़ज़ल (दिल सितमगर के नाम कर बैठे )

ग़ज़ल
(फ़ाइलातुन-मफ़ाइलुंन-फेलुंन)
ज़िन्दगी हम तमाम कर बैठे।
दिल सितमगर के नाम कर बैठे।

हो गई सिर्फ हम से यह गलती
राजे उल्फत को आम कर बैठे।

यक बयक क्या निगाह उनसे लड़ी
नींद अपनी हराम कर बैठे।

जो सियासत को लाया मज़हब में
उसका हम एहतराम कर बैठे।

जो न अब तक ज़बान कर पाई
वह निगाहों से काम कर बैठे।

वह किसी संग दिल का है कूचा
तुम जहां पर क़याम कर बैठे।

वह न तस्दीक़ आये फिर भी हम
बज़्म का इहतिमाम कर बैठे।

(मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment by Tasdiq Ahmed Khan on August 7, 2017 at 4:08pm
मुहतरम जनाब गिरिराज भाई साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला का बहुत बहुत शुक्रिया

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 6, 2017 at 5:17pm

आदरणीय तस्दीक भाई , अच्छी गज़ल कही है , दिल से बधाइयाँ स्वीकार कीजिये ।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on August 6, 2017 at 4:11pm
मुहतरम जनाब रवि साहिब, ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by Ravi Shukla on August 6, 2017 at 12:46pm

वाह वाह आदरणीय तस्दीक साहब बहुत ही उम्दा गजल कही है हर शेर पढ़ कर मजा आ गया शेर दर शेर दिली दाद और मुबारकबाद पेश करते हैं सादर

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on August 6, 2017 at 12:20pm
जनाब ब्रजेश कुमार साहिब ,ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 6, 2017 at 7:55am
वाह वाह बहुतखूब ग़ज़ल कही आदरणीय
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on August 5, 2017 at 3:36pm
जनाब सुशील सरना साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत ,खूबसूरत प्रतिक्रिया और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on August 5, 2017 at 3:34pm
जनाब गजेन्द्र साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by Sushil Sarna on August 5, 2017 at 3:05pm

ज़िन्दगी हम तमाम कर बैठे।
दिल सितमगर के नाम कर बैठे।

हो गई सिर्फ हम से यह गलती
राजे उल्फत को आम कर बैठे।

वाह एक बेहतरीन ग़ज़ल ... दिल से बधाई कबूल करें आदरणीय।

Comment by Gajendra shrotriya on August 5, 2017 at 12:50pm
बहुत खूब आ० तस्दीक अहमद साहब। खूबसूरत गजल के लिए दिली दाद।

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