For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

केदार और महेन्द्र

मेरे अग्रज कवि केदारनाथ अग्रवाल का व्यक्तित्व

पत्रों के आइने में ॰॰॰॰

[महेंद्रभटनागर]

 

महेंद्र के नाम केदार की पाती

संदर्भ :  ‘प्रतिकल्पा’ (महेंद्रभटनागर द्वारा सम्पादित व उज्जैन से प्रकाशित होने वाली त्रैमासिक पत्रिका) में प्रकाशनार्थ प्रेषित आलेख की प्रथम क़िस्त।

 

बाँदा से पत्र लिखा कविवर केदार ने,

आपको सलाम नया भेजते हैं दूर से !

प्रथमांश छपते ही नया लेख भेजूंगा,

भूल हो तो मेरे हाथ काटियेगा !!

 

शेष कुशल-मंगल है,

आपका स्नेही

मैं केदार हूँ

13-1-1958

 

 

बांदा / दि॰ 24-7-60

 

प्रिय बंधु,

बहुत दिनों से समाचार नहीं मिले। वैसे आपकी कविताएँ तो पढ़ने को मिल ही जाती हैं। आशा है कि आप रुष्ट नहीं हैं और शरीर से स्वस्थ हैं। हम ठीक हैं।

मेरी बेटी का पुनर्विवाह दि. 8-8-60 को किसी समय दोपहर के पूर्व यहीं बाँदा में स्पेशल मेरिज एक्ट के अन्तर्गत हो रहा है। आपकी उपस्थिति अनिवार्य और वांछनीय है। आशा है कि आप निराश नहीं करेंगे।

आपका,

केदारनाथ अग्रवाल

 

बांदा / दि. 4-9-1960

 

    प्रिय भाई,

    पोस्टकार्ड मिला। मैं तो समझा कि आप नाराज़ हो गये हैं तभी आप ने एक पत्र भी नहीं डाला है। अब विश्वास हुआ कि ऐसी कुछ भी बात नहीं है। पत्र के लिए धन्यवाद।

    चेकोस्लवाकिया वाले प्रोफ़ेसर स्मेकल आये थे, पर मेरे यहाँ न आये। पत्र तो आया था कि वे यहाँ आयेंगे। न मिल सका। इसका खेद है। उन्हें पत्र लिखना तो मेरी ओर से दु:ख प्रकट कर देना। वह भी मुझे भूल गये, भारत आकर भी। भाई, उसी को सब अपनाते हैं जिसका प्रभुत्व छाया रहता है। हम हैं तो टुटपुंजिये कवि। हमें सब भूले रहेंगे। बहुत दु:ख रहा, उनसे भेंट न हो पाई इसलिए।

    किरन बेटी गौहाटी पहुँच गयी । अच्छी तरह से हैं।

    अमृत प्रयाग में है। अपना प्रकाशन कर रहे हैं। खूब चैन से हैं। हम उनसे कुछ दूर पड़ गये हैं। उनका नहीं मेरा दोष है। मन ही तो है। रामविलास वैसे ही हैं; 12 अशोक नगर, आगरा में हैं। पुस्तक (भाषाविज्ञान) पर जुटे होंगे। इधर मौन है। ब्याह में नहीं आये। बेटे का विवाह कर चुके हैं। नागार्जुन पटना में हैं — उपन्यास लिख चुके हैं। परेशान हैं। मुरली (मुरलीमनोहर प्रसाद सिंह) का पता नहीं, क्यों मौन है। प्रकाशचंद्र गुप्त प्रयाग में हैं। स्वास्थ्य से कुछ चिन्तित हैं। वही रक्तचाप का रोग। पर, काम करते ही रहते हैं। हम ‘कृति’—‘ज्ञानोदय’ इत्यादि में कभी-कभी छप जाते हैं।

सस्नेह,

केदार

 

बांदा / दि. 25-1-62  / शाम 6:15 बजे

 

    प्रिय भाई,

    पत्र क्या मिला — ऐसा लगा कि हम खो गये थे और फिर मिले। पत्र के लिए और पुन: पा लेने के लिए हृदय से धन्यवाद और बधाई।

    मौसम बेहद ख़राब है। बाहर पानी बरस रहा है। आज दिन भर बरसा है। रात एक बजे से लगातार यही क्रम चल रहा है। महोवा से तीन दिन पर बाँदा लौटा हूँ। बारह बजे रात घर आया हूँ कि वर्षा शरू हो गयी है। शायद यही हाल ग्वालियर में भी होगा।

    ‘जिजीविषा’ के मिलने पर अवश्य ही अपनी रिव्यू लिखूंगा और या तो ‘हिन्दी टाइम्स’ में या ‘स्वाधीनता’ में दूंगा। विश्वास रखो।

    प्रसन्न हूँ। परिवार के अन्य लोग इलाहाबाद हैं। आजकल अकेला हूँ।

    श्री मुरलीमनोहर प्रसाद सिंह पटना में है। उनका पता है : हरकारा प्रकाशन, आर्यकुमार रोड, पटना-4

    अब आपका स्वास्थ्य कैसा है ? बहुत अर्से के बाद अपने बारे में समाचार तो दें। उत्सुक हूँ।

    ‘आधुनिक हिन्दी कविता’ की चाल वक्र है। कई स्तरों पर से होकर देसी-विदेसी प्रभाव से युग और यथार्थ के उस पक्ष को अधिक ग्रहण किये है जो कुंठाग्रस्त एवं मरणशील है। यदा-कदा जीवन्त स्वर हैं।

    सस्नेह

    आपका केदार

 

बांदा / दि. 10-12-62 / 6 : 15 बजे शाम

 

    प्रिय भाई,

    दि. 5 / 12 का पत्र दो दिन हुए मिला था। उत्तर आज लिख रहा हूँ। स्मरण के लिए कृतज्ञ हूँ।

    ‘जिजीविषा’ का विज्ञापन तो पढ़ चुका हूँ। प्रति नहीं मिली। उसे भी देखने का इच्छुक हूँ।

    हाँ, ‘सोवियत भूमि’ में मेरी एक रचना छपी थी। इसके अलावा भी मैंने दो रचनाएँ ‘हिदी टाइम्स’ में व एक हिन्दी ‘बिल्ट्ज़’ में छपाई हैं। वह चीनियों के विरुद्ध हैं। शायद वह आपको पढ़ने को नहीं मिलीं। ‘रूपलेखा’ में भी रचनाएँ आई हैं। दिवाली के साप्ताहिक समाचार पत्रों में भी कुछ छपा है। मैं ‘ज्ञानोदय’ में नहीं लिखता। अन्य पत्र ही कौन हैं जिनमें लिखूँ। ‘कल्पना’ में भेजूंगा।

    एक बात तो यह भी है  कि समय कम रहता है।

    डा. रामविलास शर्मा से क्या साहित्य चर्चा हुई ? लिखें। 

    इलाहाबाद के सम्मेलन में मैं पत्र लिख चुका हूँ। पर फिर कोई सूचना नहीं आई। ‘शायद 2 / 12 से है। प्रयास करूंगा कि पहुँचूँ। चीन ने तो प्रगति को मार डाला है। बेईमान कहीं का !

सस्नेह

केदार

 

बांदा /  दि. 28-4-68

 

    प्रिय भाई,

    पत्रा मिला। लेकिन एक युग बाद। प्रसन्नता हुई। मैं ठीक हूँ। कुछ कमज़ोर हो चला हूँ। उम्र धंस रही है न। वैसे कोई  बात विशेष नहीं। कचहरी में सरकारी मुकदमें करना ही पड़ता है।

    मैं लेख दूंगा। परन्तु अभी नहीं। समय मिलते ही लिखूंगा। वह कविता के नये प्रयोगों से संबंधित होगा।

    लेखों का संग्रह तो निकला नहीं। न निकलेगा। ज़माना कुछ और की तलाश में है। ख़ैर।

    आशा है कि अब आप स्वस्थ रहते हैं। आप तो कर्मठ लेखक हैं। आपसे क्या कहूँ।

    कविता का रंग-रूप और भीतरी अस्तित्व सभी बदला है और बदलना चाहिए। परन्तु फ़ैशन की तरह नहीं। ठोस और ठिकाने की रचनाएँ होनी चाहिए। बड़ा विघटन है। कविता कथन मात्र रह गयी है। लेकिन सब ठीक होगा —कविता कविता होगी और फिर उसका रंग होगा। अभी आदमी टूट रहा है और टूटे आदमी की रचना भी टूटी होगी।

सस्नेह

आपका केदार

 

 

बांदा / दि. 3-1-70

 

    प्रिय भाई,

    बहुत दिन पर पत्र मिला। तबियत कैसी है, यह आपने नहीं लिखा। पहले तो आप बहुत बीमार रहे थे। आशा है कि आप पूर्ण स्वास्थ्य लाभ कर चुके हैं।

    बी.ए. के तीसरे वर्ष के पाठ्य-क्रम में मुझे पढ़ाया जायगा। यह भी अच्छा हुआ। कृपा के लिए  हिन्दी कविता और मैं आभारी हूँ। कहीं तो किसी ने ध्यान रखा।

मैं इधर लेख नहीं लिख पा रहा ; क्योंकि सरकारी मुकदमों में उलझा रहता हूँ। जुलाई 70 के प्रथम सप्ताह में यह कर्तव्य ख़तम हो जायेगा। तब-तक अन्य काम नहीं कर सकता। फिर लेखनी चलाऊंगा। आपकी पुस्तकें हैं। मैं आपकी कविताओं का ध्यान रखूंगा।

    और सब ठीक है। अब उम्र 59 / 60 की हो रही है। घाट किनारे लगने वाले हैं। वैसे जीने की ज़बरदस्त आस्था है।

    मित्रों को तथा आपको नया वर्ष हर्षमय हो।

    सस्नेह आपका

    केदार

 

 

बांदा / दि. 31-12-91

 

    प्रिय भाई,

    बरसों बाद आपने याद किया, पत्रा लिखा। पुराने दिन याद आये। बड़ी प्रसन्नता हुई कि आप स्वस्थ और कुशल-क्षेम से हैं। अवकाश-प्राप्त के बाद तो समय-ही-समय रहता होगा। साहित्यिक रुचियों को जीवित करते रहें, लिखें-पढ़ें। यही चाहिए। मैं भी घर में अकेला पड़ा रहता हूँ — कुछ-न-कुछ सोचता रहता हूँ — कभी-कभी छोटी-छोटी कविताएँ लिख लेता हूँ। बेटा मद्रास में है। वहाँ जाऊंगा  भविष्य में। कुछ महीने रहूंगा।

    ‘परिमल प्रकाशन’ के श्री शिव कुमार सहाय को पत्र लिख कर बात करें। मैं तो शिथिल हूँ कि कुछ कर सकूँ। अपनी लिखी पुस्तक के बारे में उन्हें लिखें। वह अवश्य उत्तर देंगे। आपको वह जानते होंगे ही।

    सस्नेह आपका,

    केदारनाथ अग्रवाल

 

बांदा / दि. 13-1-92

 

    बंधुवर महेंद्र भटनागर जी,

    शिथिल हूँ। आँखें भी कम काम करती हैं। घर पर अकेला पड़ा रहता हूँ।

    13/2 को, समारोह में शामिल होने, पुरस्कार लेने, कुछ सहृदय व्यक्तियों के साथ, भोपाल पहुँच रहा हूँ। कष्ट तो होगा — पर उठाना पड़ेगा।

    आशा है, आप सपरिवार सानंद हैं। यथायोग्य के साथ।

    आपका स्नेहपात्र

    केदारनाथ अग्रवाल

 

    इसके बाद फिर पत्र-व्यवहार सम्भ्वत: नहीं हुआ। भाई केदार काँपते हाथों से पत्र लिख रहे थे इधर; अत: उन्हें बार-बार कष्ट देना उचित नहीं समझा।

    यह आकस्मिक था कि उस दिन मैं भी भोपाल में था; जिस दिन ‘भारत-भवन’ में श्री केदारनाथ अग्रवाल जी का काव्य-पाठ होने वाला था। सुनने पहुँच गया। पहले किसी मराठी-कवि ने काव्य-पाठ किया; फिर केदार बाबू ने। श्रोता बहुत ही कम थे। मैंने पहली बार केदार बाबू को देखा था व पहली बार उन्हें काव्य-पाठ करते सुना था। वे अपनी पुस्तकों में से काव्य-पाठ कर रहे थे। वृद्धावस्था का पूरा झे असर दृग्गोचर हो रहा था। उनकी अनेक कविताएँ मुझे कण्ठस्थ थीं। वे पढ़ भी न पाते थे कि मैं आगे की काव्य-पंक्तियाँ धीरे-से बोल देता था। आसपास बैठे अपरिचित श्रोताओं की नज़र मुझ पर बार-बार जाती थी। शायद मुझे कोई प्रोफ़ेसर या कवि समझते होंगे। अन्यथा केदारनाथ अग्रवाल की कविताएँ किसे कण्ठस्थ होतीं! केदार बाबू का काव्य-पाठ अति सामान्य ढंग का था— न उसमें भावावेश था न किसी प्रकार का अभिनय-चातुर्य। मात्र आठ-दस श्रोता  जो मौज़ूद थे, चुपचाप सुनते रहे। सराहना-प्रशंसा के कोई स्वर नहीं। लगभग एक घण्टा काव्य-पाठ होता रहा।

    बाद में , स्वल्पाहार-पूर्व,  मैं भाई केदार से मिला। बड़े प्रसन्न हुए वे। बोले, ‘परिमल प्रकशन’ के शिवकुमार सहाय आये हुए हैं, आप उनसे अवश्य मिल लें। अभी यहीं थे। फिर वे अपने धंधे से अन्यत्र न निकल जायँ। मैंने उन्हें देखा न था। इधर-उधर कई लोगों से पूछा। कोई न बता सका। पता नहीं वे कहाँ निकल गये। केदार बाबू को भी फिर नहीं खोज पाया। उपस्थित जन-समुदाय में भी मेरा कोई परिचित नहीं था। अत: घर (अपने बेटे के निवास पर; नया सुभाषनगर, भोपाल) लौट आया। केदार बाबू का कार्यक्रम अज्ञात था। इतमीनान से बैठ कर उनसे बात करने का सुअवसर न पा सका। इसका मलाल आज भी है।

 

======================================

110 बलवन्तनगर, गांधी रोड, ग्वालियर — 474 002 [म॰प्र॰]

E-Mail : drmahendra02@gmail.com

Phone : 0751-4092908


 

Views: 390

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"ग़ज़ल अच्छी है, लेकिन कुछ बारीकियों पर ध्यान देना ज़रूरी है। बस उनकी बात है। ये तर्क-ए-तअल्लुक भी…"
4 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"२२१ १२२१ १२२१ १२२ ये तर्क-ए-तअल्लुक भी मिटाने के लिये आ मैं ग़ैर हूँ तो ग़ैर जताने के लिये…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )

चली आयी है मिलने फिर किधर से१२२२   १२२२    १२२जो बच्चे दूर हैं माँ –बाप – घर सेवो पत्ते गिर चुके…See More
7 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर नज़र ए करम का देखिये आदरणीय तीसरे शे'र में सुधार…"
12 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय भंडारी जी बहुत बहुत शुक्रिया ग़ज़ल पर ज़र्रा नवाज़ी का सादर"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"  आदरणीय सुशील सरनाजी, कई तरह के भावों को शाब्दिक करती हुई दोहावली प्रस्तुत हुई…"
15 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उमर  का खेल ।स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।खूब …See More
16 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
17 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर इस्लाह करने के लिए सहृदय धन्यवाद और बेहतर हो गये अशआर…"
17 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. आज़ी तमाम भाई "
17 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आ. आज़ी भाई मतले के सानी को लयभंग नहीं कहूँगा लेकिन थोडा अटकाव है . चार पहर कट जाएँ अगर जो…"
17 hours ago
Aazi Tamaam commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"बेहद ख़ूबसुरत ग़ज़ल हुई है आदरणीय निलेश सर मतला बेहद पसंद आया बधाई स्वीकारें"
17 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service