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ग़ज़ल नूर की - तेरे सदमे से उबर जाऊँगा,

२१२२/११ २ २/२२ (११२)

.
तेरे सदमे से उबर जाऊँगा,
न उबर पाया तो मर जाऊँगा.
.
अपनी ही मौत का इल्ज़ाम हूँ मैं
क्यूँ किसी ग़ैर के सर जाऊँगा.
.
मेरी बेटी! तू मुझे “भौ” कर के  
जब डरायेगी तो डर जाऊँगा.
.
बूँद रहमत की, फ़क़त एक ही बूँद  
काश बरसे तो मैं तर जाऊँगा.
.
आती सदियों की तलब की ख़ातिर
जाम कुछ “नूर” से भर जाऊँगा.  
.
निलेश "नूर"
.
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 787

Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 24, 2017 at 10:48am

शुक्रिया आ. मोहमम्द आरिफ़ साहब 

Comment by Gurpreet Singh jammu on May 24, 2017 at 10:18am

वाह जी वाह ,, क्या ही शानदार ग़ज़ल है,, बेटी वाला शेर तो सीधे  दिल में उतर गया है,,  

Comment by Mohammed Arif on May 24, 2017 at 10:05am
तेरे सदमे से उबर जाऊँगा
न उबर पाया तो मर जाऊँगा । वल्लाह कमाल!!बहुत मारक क्षमता वाला शे'र ।
अपनी ही मौत का इल्ज़ाम हूँ मैं ,
क्यूँ किसी ग़ैर के सर जाऊँगा । वल्लाह कमाल है! बहुत ख़ूब ।
शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद आदरणीय नीलेश जी ।

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