For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - हम चाह कर ख़ुदा की इबादत न कर सके ( गिरिराज भंडारी )

221  2121  1221 212

हो चाह भी, तो कोई ये हिम्मत न कर सके

तेरी जफ़ा की कोई शिकायत न कर सके

 

तुम क़त्ल करके चौक में लटका दो ज़िस्म को

ता फिर कोई  भी शौक़ ए बगावत न कर सके

 

हाल ए तबाही देख तेरी बारगाह की  

हम जायें बार बार ये हसरत न कर सके

बारगाह - दरबार

मैंने ग़लत कहा जिसे, हर हाल हो ग़लत

तुम देखना ! कोई भी हिमायत न कर सके

 

बन्दे जो कारनामे तेरे नाम से किये

हम चाह कर ख़ुदा की इबादत न कर सके

 

माना कि तल्ख़ियाँ रहीं गुफ़्तार में मगर    

पोशीदा यार तुम भी अदावत न कर सके

 

मिल कर निजाम से कोई आईन ऐसा गढ़     

कोई किसी ज़मीन पे हुज्जत न कर सके

आईन - कानून , विधान

उर्दू का लफ्ज़ था कोई हिन्दी के लफ्ज़ हम

अफसोस पास रह के इज़ाफत न कर सके

इज़ाफत - सम्बन्ध

पगड़ी की फिक्र थी जिन्हें, अकड़े रहे सदा  

झुक कर वो फिर कहीं भी मुहब्बत न कर सके

*******************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 1026

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 21, 2017 at 2:19pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से  आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 20, 2017 at 11:52am

आ. भाई गिरिराज  जी , इस सुंदर गजल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें।

Comment by Samar kabeer on May 19, 2017 at 10:26pm
मेरे कहे को मान देने के लिये धन्यवाद,हम तो सेवक हैं ओबीओ के ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 19, 2017 at 9:52pm

आदरनीय समर भाई , ख़ुदा वाले शेर के भाव को बारीकी से समझने और समझाने के लिये आपका हार्दिक आभार । आपके द्वारा किया बदलाव मै स्वीकार करता हूँ ..

'बन्दे जो कारनामे तेरे नाम पर किये
ये देख हम भी तेरी इबादत न कर सके  ..   ... बहुत खूब ... बहुत आभार आपका ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 19, 2017 at 9:48pm

आदरनीय नरेन्द्र भाई , हौसला अफज़ाई का शुक्रिया आपका ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 19, 2017 at 9:47pm

आदरनीय गुर प्रीत भाई , ग़ज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धंन करने के लिये आपका हार्दिक आभार ।

Comment by Samar kabeer on May 19, 2017 at 6:41pm
'बन्दे जो कारनामे तेरे नाम पर किये
हम चाह कर ख़ुदा की इबादत न कर सके'

इस शैर में शुतरगुर्बा का ऐब नहीं है,लेकिन दोनों मिसरों में वो रब्त नहीं जो दोनों मिसरों को बाहम करता है,ऊला मिसरे में जब 'तेरे'शब्द ख़ुदा के लिये इस्तेमाल किया जा रहा है तो सानी मिसरे में 'ख़ुदा'कहने की क्या ज़रूरत है,मिसाल के तौर पर :-

'बन्दे जो कारनामे तेरे नाम पर किये
ये देख हम भी तेरी इबादत न कर सके'
एक बात और :-
'हम चाह कर ख़ुदा की इबादत न कर सके'
यहाँ इस मिसरे को पढ़ कर ये सवाल पैदा होता है कि इबादत करना चाहते हैं मगर कुछ ख़ुदा के बन्दों के कारनामे देख कर नहीं करते,ये बात इस लिये गले नहीं उतरती कि दुनिया में अच्छे बुरे सभी तरह के लोग हैं,बुरे अपनी बुराई नहीं छोड़ते,इसी तरह अच्छे लोग अपनी अच्छाई नहीं छोड़ते,अगर बुरे लोगों के कारण अच्छे लोग अच्छाई से बाज़ आ गये तो क्या होगा,देखने में तो ये आया है कि नेक लोगों की नेकी की वजह से बद लोग सुधर जाते हैं,लेकिन इस शैर में कथ्य उल्टा नज़र आ रहा है ।
Comment by narendrasinh chauhan on May 19, 2017 at 5:29pm

हो चाह भी, तो कोई ये हिम्मत न कर सके

तेरी जफ़ा की कोई शिकायत न कर सके

 

तुम क़त्ल करके चौक में लटका दो ज़िस्म को

ता फिर कोई  भी शौक़ ए बगावत न कर सके

लाजवाब। .. 

Comment by Gurpreet Singh jammu on May 19, 2017 at 1:52pm

waa

वाह वाह बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल है आदरणीय गिरिराज जी
उर्दू का लफ्ज़ था कोई हिन्दी के लफ्ज़ हम
अफसोस पास रह के इज़ाफत न कर सके
यह शियर तो उफ़

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 19, 2017 at 1:46pm

आ. गिरिराज जी,
खुदा और तू अथवा तेरे आने से शातुर्गुरबा नहीं है... आप इशारा नहीं समझे...
ऊपर तेरे आने से नीचे ऐ ख़ुदा या संबोधन आएगा ...
खैर..
जैसा आप उचित समझे
सादर  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
3 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
19 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service