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"चिरनिद्रा- चिर-विश्रांति "/कविता - अर्पणा शर्मा

नदी के भँवर में घूमते पत्ते से,
जो खिंचता-जाता समाने उसमें,
जीवन है ड़ूबता- उतराता,
काल के नित गहराते भँवर में,
धवल आकाशगंगा के,
गहन काले गह्वर की मानिंद,
हमें आलिंगन में लेने को आतुर,
ओह ये मृत्यु ...!!
 
शनैः-शनैः सब समाता उसमें,
धीरे-धीरे खिंचते जारहे,
हम भी नित उसी ओर,
जन्म के साथ ही,
है शुरू होजाती,
यह गणना पलछिन,
यह माटी का पुतला ,
जीवित रहेगा ,
आखिर कितने दिन,

उलझते जीवन के व्यापार में यूँ,
 भाग्य में लिख लाए,
 सहस्त्रों वर्ष ज्यूँ,
करते सब इंतज़ाम ऐसे,
कि यहीं बसना है सदा जैसे ,
धन, संपदा, उपलब्धियों के ,
मद में भरे,
 आसन्न मृत्यु से नितांत परे,
छूद्र व्यवहारों में आकंठ लिपटे,
इस जग की विजय कैसे करें,

बेहद छटपटाती है आत्मा,
क्यूँ मृत्यु है अवश्यंभावी,
क्यों हर जन्म के साथ है ये जुड़ी,
क्यूँ हम सदा यहाँ रह नहीं सकते,
अमरत्व की लालसा तो,
 देवों में भी प्रबल रही,

देती हँस कर उत्तर प्रकृति,
अमरत्व अगर मैं देती ,
तो वापस लेती जन्म भी,
कि फिर न होगी कोई पौध नई,
नई उमंगों, नई जिज्ञासाओं,
नई आशाओं से भरी,
कि फिर कभी कोई शिशु अथवा
प्रथम प्रेम होगा ही नहीं,
तुम्हारे अमरत्व से है ये शर्त जुड़ी,
तब होंगे वही बूढ़े चेहरे,
भार जीवन का ढ़ोते हुए...
तनिक ऐसी कल्पना करो,
फिर कहो ,
इसका उत्तर क्या हो ....??

झरते  हैं पीत पात भी,
स्थान देने नव-कोंपलों को,
सूखते हैं पुष्प भी,
नवल पुष्पों के आगमन को,
हर पीढ़ी माटी में मिल,
उर्वरा करती है धरती,
नव-पीढ़ी के स्वागत को,
बेतरह थकन के बाद,
एक लंबे दिन की
विश्राम को आतुर जीव,
सुप्त होजाता है मगन,
जीवन के बोझ से क्लांत,
जर्जर, खंड़हर शरीर,
तड़पेगा पाने विश्रांति,
स्वयं करेगा रिक्त स्थान ,
ज्यों पूर्वजों ने दिया हमें,
और छोड़ गए अपने निशान,
ले आमंत्रण नव-जीवन,
ले मुझे अपने आलिंगन,
दे मुझे विश्रांति,
मेरी प्रिय -चिर सखी,
अहा मृत्यु ...!!

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Arpana Sharma on May 6, 2017 at 12:56pm
आदरणीय श्रीमान् विजय निकोर जी एवं सतविन्दर कुमार जी - आपकी सराहना का बहुत धन्यवाद ।
Comment by vijay nikore on May 4, 2017 at 4:28pm

अति भावयुक्त, जीवन के सत्य से भरपूर, सोचने को बाधित करती इस गहन प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीया अर्पणा जी।

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on April 19, 2017 at 8:51pm
इस गम्भीर अभिव्यक्ति के लिए हृदय से बधाई आदरणीया, सादर
Comment by Arpana Sharma on April 18, 2017 at 5:31pm
आदरणीय श्रीमान् ब्रजेश कुमार 'ब्रज'जी, आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'जी एवं आदरणीय श्रीमान् आशुतोष मिश्रा जी - आप सभी की सराहना से मेरी लेखनी को संबल मिला। बहुत धन्यवाद ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 18, 2017 at 4:59pm

आदरणीया अर्पणा जी बहुत ही गंभीर इस रचना पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर

Comment by नाथ सोनांचली on April 18, 2017 at 4:22am
मोहतरमा अर्पणा शर्मा जी सादर अभिवादन,बहुत सुंदर और जज़्बाती कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 17, 2017 at 10:05pm
बहुत ही उत्तम सृजन.. सब जानते हैं की जीवन का अंतिम पड़ाव क्या है..सभी उसी शाश्वत सत्य की ओर बढ़ते जाते हैं न चाहते हुए भी..एक दिन जीवन म्रत्यु का मधुर मिलन होना तय है..बधाई
Comment by Arpana Sharma on April 17, 2017 at 9:59pm
आदरणीया कल्पना भट्ट जी ,आदरणीय जनाब समर कबीर साहब एवं जनाब मोहम्मद आरीफ जी - आपके प्रोत्साहन का बहुत धन्यवाद ।
Comment by Samar kabeer on April 17, 2017 at 9:11pm
मोहतरमा अर्पणा शर्मा जी आदाब,बहुत सुंदर और जज़्बाती कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on April 17, 2017 at 11:10am
बहुत गम्भीर रचना है यह आपकी आदरणीया अर्पणा जी । कल आपसे इस रचना को सुनना सौभाग्य की बात थी । आप बहुत अच्छा लिखती हो । हार्दिक बधाई ।

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