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ये हमारी शान है औ ये हमारा है वतन- बैजनाथ शर्मा 'मिंटू'

2122  2122  2122    212

 

जाग गहरी नींद से औ देख अपना ये चमन

ये हमारी शान है औ ये हमारा है वतन|

 

भोली सूरत देखकर या फिर किसी भी लोभ में

जो जलाते घर हमारे दो न तुम उनको शरण |

 

धर्म के जो नाम पर हमको लड़ाते आ रहे

आ गए फिर वोट लेने सोच कर करना चयन|

 

आदमी की शक्ल में जो हैं सरापा भेड़िये

कब तलक जुल्मों सितम उनके करेंगे हम सहन|

 

गर बचाना देश है तो मार दो गद्दार को

झट मिटा दो नाम अब तो मत करो पुतला दहन|

 

आसतीं का साँप है और दोगला है शख्स जो

पीठ पीछे वार करता सामने करता नमन||

 

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on April 15, 2017 at 1:18am

आदरणीय निलेश साहेब .....आपकी प्रतिक्रिया पर अवश्य गौर करूँगा| बहुत बहुत शुक्रिया आपका 

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on April 15, 2017 at 1:16am

आदरणीय गिरिराज साहेब .......हौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on April 15, 2017 at 1:15am

आदरणीय आरिफ साहेब ,,,,बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 12, 2017 at 9:56pm

आ. बैजनाथ जी,
मतले में तीन बार ये थोडा अटपटा लग रहा है.
शरण काफ़िया मेरे हिसाब से दुरुस्त नहीं है यहाँ क्यूँ की मैं शरण को शरन कर के  पढना नहीं पसंद करूँगा.
.

गर बचाना देश है तो मार दो गद्दार को

झट मिटा दो नाम अब तो मत करो पुतला दहन|,, ऐसे कठोर वचन ग़ज़ल में न लिया कीजिये... 
रचना को थोडा और समय देते और मिसरों को स्वतंत्र और पूर्ण वाक्य के रूप में कहने का प्रयत्न करते तो और बेहतर होता...
आप को शुभकामनाएँ 
सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 12, 2017 at 9:53pm

आदरनीय बैजनाथ भाई , देश भक्ति से ओत्प्रोत आपकी गज़ल अच्छी लगी , बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by Mohammed Arif on April 12, 2017 at 8:49pm
आदरणीय बैजनाथ जी आदाब, बेहतरीन ग़ज़ल । हर शे'र लाजवाब । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।

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