For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तरही गजल : दिन सुहाने हो गये राते सुहीनी हा गईं

2122   2122   2122   212

दिन सुहाने हो गए राते सुहानी हो गईं,
उनके आते ही बहारें जाफ़रानी हो गईं।

रंग और खुशबू की बातें अब कहानी हो गईं,
मुश्किलें लगता है जैसे जाविदानी हो गईं।

आसमाँ ने जब उफ़क पर चूम धरती को लिया,
कमसिनी को छोड़कर ऋतुएं सुहानी हो गईं।

बेकरारी आज जितनी है कभी पहले न थी,
आदतें भी सब्र की जैसे कहानी हो गईं।

मिहनतों को जब मिला तेरा सहारा ए ख़ुदा,
मुश्किलें भी मेरी घट कर दरमियानी हो गईं।

रेत का इक सैल आया सब उड़ाकर ले गया,
क़ैस की तन्हाइयाँ फिर से ख़ज़ानी हो गईं।

जल गया था तूर तेरे नूर की पाकर झलक,
ख़्वाहिशें मेरी जो थीं वो लनतरानी हो गईं'।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 883

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ravi Shukla on April 4, 2017 at 2:46pm

आदरणीय तस्‍दीक साहब आपके दाेनो सुझाव के अनुसार हम फिर से सोचेंगे । रेगिस्‍तान में हवा चलने से रेत के टीलों पर पानी की लहरों की तरह ही उर्मियां बन जाती है आंधी तुफान गुजरने के बाद वहीं मंजर होता है हमारे दिमाग मे वहीं दृश्‍य था । ये सही है कि सैल और अाब से सैलाब की निस्‍बत ज्‍यदा सही है इस शेर पर कुछ विकल्‍प के बारे में सोचेंगे ।  अंतिम शेर में प्रसंग तो आप जान ही गये होंगे हमारा खुदा से मालिक से एक महबूब सा रिश्‍ता समझ आता है हमें । शिकायत करते है, रूठना ,मनाना सब है उसके प्रति संवाद में । कहीं किसी तरह का खौफ नहीं है । वहीं शिकायत है कि तुम जो चाहो तो  तूर को जला कर खाक कर दों और हम चाहे तो हमारी ख्‍वाहिश लंतरानी है । क्‍यों भाई ये कहा की बात हुई माना तुम सर्वशक्ति मान हो जो करो ठीक तो हम भी तो तुम्‍हारा ही अंश है जब सब कुछ तुम्‍हीं हो तो फिर हम तुमसे कहां अलग हुए । कुछ इसी तरह की मीठी नोक झोंक का मन था इस शेर में पर आप तक बात नहीं पंहुची तो शेर कामयाब नहीं हो पाया शायद । आशा है हम अपनी बात कह सके है जब ईश्‍वर से अपने संबधों को शब्‍दों में व्‍यक्‍त करना हो तो बात गडमड हो जाती है गूगें का गुड जैसा हो जाता है ।

Comment by Ravi Shukla on April 4, 2017 at 2:35pm

अादरणीय समर साहब आपकी हौसलाआफजाई काक बहुत बहुत शुक्रिया । आर्शीवाद बनाये रखें । सादर  

Comment by Ravi Shukla on April 4, 2017 at 2:34pm

आदरणीय महेंन्‍द्र जी गजल को आपने समय देकर पसंद किया बहुत बहुत धन्‍यवाद

Comment by Ravi Shukla on April 4, 2017 at 2:33pm

आदरणीय सतविन्‍द्र जी गजल को मान देने के लिये बहुत बहुत आभार

Comment by Ravi Shukla on April 4, 2017 at 2:33pm

आदरणीय मोहम्‍मद आरिफ साहब गजल में शिरकत करने का शुक्रिया

Comment by Ravi Shukla on April 4, 2017 at 2:32pm

आदरणीय आशीष जी गजल को मान देने के लिये बहुत बहुत आभार

Comment by Ravi Shukla on April 4, 2017 at 2:32pm

आदरणीय बैज नाथ जी गजल पसंद आई बहुत बहुत आभार

Comment by Ravi Shukla on April 4, 2017 at 2:31pm

आदरणीय नीलेश जी गजल को मान देने के लिये बहुत बहुत आभार

Comment by Mahendra Kumar on April 4, 2017 at 8:53am
आदरणीय रवि सर, इस बढ़िया ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on April 1, 2017 at 4:07pm
आदरणीय रवि सर,उम्दा गजल कही है अपने।शेर दर शेर मुबारकबाद कबूल कीजिए!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Tuesday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
Tuesday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service