For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल :चुनाव के दिन हैं

1212 1122 1212 22

हमें न ख़्वाब दिखाओ चुनाव के दिन हैं,
अभी तो होश में आओ चुनाव के दिन है ।

बला से कोई बने शाह मुल्क में माना,
तुम अपना फ़र्ज़ निभाओ चुनाव के दिन हैं।

ख़ता मुआफ़ उसूलों को आज रहने दो,
अदू से हाथ मिलाओ चुनाव के दिन हैं।

ये इत्तिहाद मुबारक़ हो ओहदों के लिए,
हिसाब और लगाओ चुनाव के दिन हैं।

गुज़िश्ता पाँच बरस का हिसाब पूछेंगे
कहाँ थे आप बताओ चुनाव के दिन हैं।

सहीह आज ये मौका बदल दो सूरते हाल,
कदम कदम ही बढ़ाओ चुनाव के दिन हैं।

जो चल रहे हैं ज़माने में ले के नफ़रत को,
सभी अलम वो जलाओ चुनाव के दिन है।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 714

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 25, 2017 at 8:36pm

सादर आभार आदरणीय रवि भाई 

Comment by Ravi Shukla on February 24, 2017 at 5:30pm
आदरणीय सौरभ भाईजी बात तो आपकी सही है कि8 ये ख्वाब ही दिखाते है ।।हमारा मंतव्य उनको विरोध प्रकट करने का था । मल्लब जाओ हमें अब ख्वाब न दिखाओ हमें मालूम है तुम क्या हो । पर शायद बात बनी नहीं । इसीलिए आपकी टिप्पणी का स्वागत है । किकुछ बेहतर हुआ तो साझा करेंगे । हाँ किसी रचना पर आपकी उपस्थिति से ये तो समझ आता है कि हां कुछ तो है जिसने आपको भी कुछ कहने को प्रेरित किया ( हम इसको सकारात्मक रूप में लेते है :-)) सादर
Comment by Ravi Shukla on February 24, 2017 at 5:18pm
आदरणीया राजेश दीदी और आदरणीय गिरिराज भाई जी पर आपके प्रोत्साहन से हौसला मिलता है । बहुत बहुत शुक्रिया ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 17, 2017 at 8:58pm

आद० रवि भैया ,आज के माहौल पर  बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने बहुत खूब शेर दर शेर बधाई कुबूलें 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 16, 2017 at 11:28pm

आ० रवि भाई, आपकी ग़ज़ल चुनाव-चुनाव कर गयी !.. :-))

बहुत खूब आदरणीय ! 

लेकिन मतला के उला में आपकी सशक्त तार्किकता क्यों उथली पड़ी है भाई ? मेरे हिसाब से चुनाव के दिनों में ख़्वाब ही तो दिखाये जाते हैं ! क्या मैं गलत कह रहा हूँ ? भाई हाथ कंगन को आरसी क्या ? भाई लोग रोज़ नमूदार हो रहे हैं .. :-))

शुभ-शुभ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 16, 2017 at 5:12pm

आदरनीय रवि भाई , सामयिक गज़ल बहुत अच्छी कही है , हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by Ravi Shukla on February 16, 2017 at 11:43am

आदरणीय डाक्‍टर गोपाल नारायण जी गजल पर आपका प्रोत्‍साहन पाकर बहुत खुश्‍ाी हुई । सादर

Comment by Ravi Shukla on February 16, 2017 at 11:42am

आदरणीय सुरेन्‍द्र जी आपको गजल पसंद आई बहुत बहुत धन्‍यवाद प्रासंगिक है इसलिये इन दिनाे ही पोस्‍ट कर दी ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 15, 2017 at 7:50pm

आ० शुक्ला जी .  बहुत गजब  आदरणीय

Comment by नाथ सोनांचली on February 15, 2017 at 3:45pm
आदरणीय गुरुदेव सादर अभिवादन स्वीकार करें। बेहतरीन ग़ज़ल जो आज कल विधान सभा चुनाव को देखते हुए प्रासंगिक भी है, पर एक शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ। सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
16 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service