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२२१२/२२१२/२२१२

बाजा़र मे दिल आज़माया कर कभी,
दिल बेचने भी यार आया कर कभी।

दिल टूटने का दर्द अब होगा नही,
इन पत्थरों से दिल लगाया कर कभी।

माना सितारों से बहुत हैं प्यार पर,
जुगनूओं को घर भी बुलाया कर कभी।

दुनिया अमीरों के मुआफ़िक हैं मगर,
कुछ घर ग़रीबी के सज़ाया कर कभी।

बे-शक ये रास्ते हैं तरक़्की़ के मगर,
पैमाना पर इनका बनाया कर कभी।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Hemant kumar on April 3, 2017 at 8:54pm
बहुत बहुत शुक्रिया शेवगाँवकर जी ।
जी मै जरूर सुधार करूंगा शायद इसी लिए यह मंच हमारे लिए अद्भुत है अकल्पनीय है...
यहाँ तो बच्चों को उंगली पकड़कर चलना सिखाया जाता है!
पुनः आभार आपका...
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 2, 2017 at 10:13pm

बहुत ख़ूब..
अतिम शेर में रास्ते को रस्ते कर लें ..
सादर 

Comment by Hemant kumar on March 30, 2017 at 5:55am
जनाब मुक्त जी आदाब
हौसला अफजाई के लिए आपका बहुत बहुत आभार...
Comment by Hemant kumar on March 30, 2017 at 5:52am
आरिफ सर प्रणाम !
हौसला अफजाई के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ....
Comment by Hemant kumar on March 30, 2017 at 5:48am
परम् आदरणीय कबीर सर प्रणाम!
आपका बहुत बहुत धन्यवाद इस तरह समझाने के लिए मुझे लग रहा है "जुगनूओं"(गलत है)
शब्द बे-बहर हो रहा है ,मै इसे ठीक करता हूँ..
मेरी ग़ज़ल को दाद देने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद!
Comment by Mohammed Arif on March 29, 2017 at 7:01pm
आदरणीय हेमंत कुमार जी आदाब, बहुत शानदार ग़ज़ल । शेर दर शेर दाद के साथ मुबारकबाद ।
Comment by Samar kabeer on March 29, 2017 at 6:32pm
जनाब हेमन्त कुमार जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
'जुगनूओं को घर भी बुलाया कर कभी'
इस मिसरे को बह्र के हिसाब से चेक कर लें ।

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