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गजल(कुर्सियाँ किसकी हुईं हैं बोलिये भी)

#गजल#-103

.

कुर्सियाँ किसकी हुई हैं बोलिये भी
गाँठ में क्या-क्या छिपा है खोलिये भी।1

आपको भी क्या न करना पड़ गया है
हो न सकते साथ जिनके,हो लिये भी।2

जानते सब कुर्सियों की कीमतें हैं
हम भुला खुद को जरा-सा तोलिये भी।3

घोलते आये फ़िजां में क्या नहीं कुछ
अब जहर फिरसे यहाँ मत घोलिये भी।4

कुर्सियों के ताव में कुछ कर गये थे
चोट खायी खूब हमने गो लिये। भी।5
@मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 28, 2017 at 10:29am
वाह बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई आदरणीय..
Comment by Manan Kumar singh on March 27, 2017 at 7:48pm
आदरणीय सुशील सरना जी,स्नेह जाहिर करने के लिए शुक्रिया।
Comment by Manan Kumar singh on March 27, 2017 at 7:48pm
आदरणीय सुशील सरना जी,स्नेह जाहिर करने के लिए शुक्रिया।
Comment by Manan Kumar singh on March 27, 2017 at 7:48pm
आदरणीय सुशील सरना जी,स्नेह जाहिर करने के लिए शुक्रिया।
Comment by Manan Kumar singh on March 27, 2017 at 7:40pm
आदरणीय समर साहिब,नज्र बख्शने का शुक्रिया!'गो'लेना,मतलब मन मारकर/ध्यान न देकर सह लेना/बर्दास्त कर लेना,सादर।
Comment by Manan Kumar singh on March 27, 2017 at 7:36pm
आपका आभार आ दर णीय आ रि फ भाई।
Comment by Sushil Sarna on March 27, 2017 at 3:49pm

कुर्सियाँ किसकी हुई हैं बोलिये भी
गाँठ में क्या-क्या छिपा है खोलिये भी।1

वाह बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल और भाव। ... हार्दिक बधाई आदरणीय।

Comment by Samar kabeer on March 27, 2017 at 3:20pm
जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,ग़ज़ल अच्छी हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
रदीफ़ में 'भी'शब्द के बग़ैर भी काम बन जाता ?
'चोट खाई ख़ूब हमने गो लिये भी'
इस मिसरे में 'गो लिये'का अर्थ बताने का कष्ट करें ।
नियमानुसार ग़ज़ल के साथ अरकान नहीं लिखे आपने ?
Comment by Mohammed Arif on March 27, 2017 at 2:10pm
आदरणीय मनन कुमार जी आदाब, शानदार ग़ज़ल । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

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