For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

किसे ये सब समझाऊँ .... स्त्री की ज़िंदगी का एक पहलू // डॉ० प्राची

रात सिसकती सुबह सुलगती, है जीवन का लेख
दर्द भरा सागर आँखों में, कौन सका है देख ?
कहाँ मैं अश्रु बहाऊँ ?
किसे मैं व्यथा सुनाऊँ ?

बेटी थी जिस घर की उसने छीन लिए अधिकार
हक़ माँगा तो रिश्तों में पहुँचेगी बड़ी दरार !
क्या बोलूँ ? किससे बोलूँ ? समझेगा मुझको कौन ?
अपने हक़ की बात करूँ या रह जाऊँ फिर मौन ?
कौन सा क़दम उठाऊँ ?
कभी ये समझ न पाऊँ !!!

कठपुतली सा नाच नचाती है मुझको ससुराल
घर की लक्ष्मी का दासी से भी बद्तर है हाल,
जितना सहती हूँ बढ़ते हैं उतने अत्याचार
छीन लिए सबने मुझसे मेरे सारे अधिकार ,
मदद को किसे बुलाऊँ ?
कहाँ आवाज़ उठाऊँ ?

जब तक सबकी हर इच्छा का रखती हूँ मैं ध्यान
बस तब तक ही मेरे घर में है मेरा स्थान ,
हाय! बेबसी मेरी, सहने हैं मुझको अन्याय
ना ज़मीन ना घर है मेरा ना है कोई आय ,
घुटन ही सहती जाऊँ ?
कहीं ना मैं मर जाऊँ ?

जिस आँगन पर जीवन वारा, कब छूटे वो द्वार
कब बेघर हो जाऊँ डर लगता है कितनी बार ,
बस धरती का एक किनारा होता मेरे नाम
उस पर बुनकर एक घरौंदा मन पाता आराम ,
टूट कर बिखर न जाऊँ ?
कहाँ मैं स्वप्न सजाऊँ ?

यदि ज़मीन औ' घर का टुकड़ा होता मेरे नाम
कभी आत्म-सम्मान नहीं होने देती नीलाम ,
मैं भी अपने निर्णय लेती, कहती अपनी बात
तब मुझको कैसे मेरे अपने देते आघात ,
बदल पर कुछ ना पाऊँ ?
किसे ये सब समझाऊँ ?


मौलिक और अप्रकाशित

Views: 962

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mahendra Kumar on March 8, 2017 at 9:15pm
वाह! वाह!! क्या शानदार गीत प्रस्तुत किया है आपने आदरणीया प्राची जी। दिल को भीतर तक छू गया। इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on March 8, 2017 at 2:46pm
आदरणीया प्राची जी नारी की पीड़ा का अत्यंत मार्मिक चित्रण। गहने कपड़ों की जगह नारी को एक जमीन का टुकड़ा या फ्लेट के साथ विदा किया जाता तो ज्यादा सार्थक होता। अच्छा प्रश्न खड़ा किया है आपने इस रचना में।
Comment by narendrasinh chauhan on March 8, 2017 at 11:23am

KHUB SUNDAR RACHNAA 

Comment by Sushil Sarna on March 7, 2017 at 7:37pm

बस धरती का एक किनारा होता मेरे नाम
उस पर बुनकर एक घरौंदा मन पाता आराम ,

आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी नारी के अंतर्द्वंद को आपने बड़ी ही खूबी सरल भाषा में चित्रित किया है। इसके लिए दिल से बधाई स्वीकार करें। क्षमा सहित आदरणीया ''कठपुतली सा नाच नचाती है मुझको ससुराल'' इस पंक्ति में नचाती के स्थान पर क्या नचाता का प्रयोग उचित नहीं होगा क्योंकि ''ससुराल'' के साथ नचाती का प्रयोग उचित नहीं लग रहा। कृपया संशय दूर करें।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 7, 2017 at 7:31pm

सादर धन्यवाद आदरणीय आशुतोष मिश्रा जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 7, 2017 at 7:30pm

समय के साथ आते परिवर्तन को मैंने इससे पहले गीत में पुरजोर तरह से दर्शाया है.. 

यह गीत आपको यथार्थ के करीब लगा , आपके अनुमोदन की आभारी हूँ आ० सुरेन्द्र नाथ जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 7, 2017 at 7:28pm

सादर धन्यवाद आदरणीय समर कबीर जी 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 7, 2017 at 6:55pm
आदरणीया प्राची जी इस सूंदर रचना के माध्यम से औरतो की एक बड़ी तादाद जो इस दंश को झेल रही है का दर्द आपने प्रस्तुत किया है रचना पर हार्दिक बधाई सादर
Comment by नाथ सोनांचली on March 7, 2017 at 3:12pm
आदरणीय प्राची सिंह जी सादर अभिवादन, काफी सटीक लिखा आपने, समाज की स्थिति ऐसी ही है, पर यह भी सच है कि कालखंड के हिसाब से इसमें गुणात्मक परिवर्तन भी आ रहा है, लोग पत्नियो के नाम से जमीन ले रहे हाउ और उत्तर पूर्व के राज्यो में मातृसत्तात्मक व्यवस्था भी है, पर हाँ अधिकांसतः वही है जिसे आपने उकेरा है। बधाई
Comment by Samar kabeer on March 7, 2017 at 3:12pm
मोहतरमा डॉ.प्राची सिंह जी आदाब,अच्छा लगा आपका गीत,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- गाँठ
"भाई, सुन्दर दोहे रचे आपने ! हाँ, किन्तु कहीं- कहीं व्याकरण की अशुद्धियाँ भी हैं, जैसे: ( 1 ) पहला…"
11 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"सादर नमस्कार आदरणीय।  रचनाओं पर आपकी टिप्पणियों की भी प्रतीक्षा है।"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।नमन।।"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी।नमन।।"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बहुत ही भावपूर्ण रचना। शृद्धा के मेले में अबोध की लीला और वृद्धजन की पीड़ा। मेले में अवसरवादी…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"कुंभ मेला - लघुकथा - “दादाजी, मैं थक गया। अब मेरे से नहीं चला जा रहा। थोड़ी देर कहीं बैठ लो।…"
Feb 28
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी, हार्दिक बधाई । उच्च पद से सेवा निवृत एक वरिष्ठ नागरिक की शेष जिंदगी की…"
Feb 28
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बढ़िया शीर्षक सहित बढ़िया रचना विषयांतर्गत। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।…"
Feb 28
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"रचना पटल पर उपस्थिति और विस्तृत समीक्षात्मक मार्गदर्शक टिप्पणी हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय तेजवीर…"
Feb 28
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"जिजीविषा गंगाधर बाबू के रिटायर हुए कोई लंबा अरसा नहीं गुजरा था।यही दो -ढाई साल पहले सचिवालय की…"
Feb 28

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service