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ग़ज़ल नूर की : ये नहीं है कि हमें उन से मुहब्बत न रही,

२१२२, ११२२, ११२२, २२

ये नहीं है कि हमें उन से मुहब्बत न रही,
बस!! मुहब्बत में मुहब्बत भरी लज्ज़त न रही. 
.
रब्त टूटा था ज़माने से मेरा पहले-पहल,
रफ़्ता-रफ़्ता ये हुआ ख़ुद से भी निस्बत न रही.
.
ज़ह’न में कोई ख़याल और न दिल में हलचल,
ज़िन्दगी!! मुझ में तेरी कोई अलामत न रही.
.
उन से नज़रें जो मिलीं मुझ पे क़यामत टूटी,
वो क़यामत!! कि क़यामत भी क़यामत न रही.
.
याद गर कीजै मुझे, यूँ न मुसलसल कीजै, 
हिचकियां सहने की अब जिस्म को आदत न रही.

बस... बिला-वज़’ह उसे डांट दिया था मैंने,
“नूर” उस रोज़ इबादत भी इबादत न रही.
.
मौलिक / अप्रकाशित 
निलेश "नूर"

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 1, 2017 at 3:11pm

धन्यवाद 

Comment by रमेश कुमार चौहान on February 26, 2017 at 7:31pm

हार्दिक शुभकामनाएं आदरणीय 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 24, 2017 at 10:12am
क्या कहने बहुत शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीय हार्दिक शुभकामनाएं..
Comment by Gurpreet Singh jammu on February 23, 2017 at 11:19am

आदरणीय नीलेश सर जी। .. बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 23, 2017 at 8:26am

आ. नूर भाई , बेहतरीन गज़ल कही , दिली मुबारक बाद आपको ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on February 23, 2017 at 6:52am

शुक्रिया ...सभी को...शुक्रिया आ. समर सर.. जल्दी का काम शैतान का इसीलिए कहते हैं :)

Comment by Nilesh Shevgaonkar on February 23, 2017 at 6:52am

शुक्रिया ...सभी को...शुक्रिया आ. समर सर.. जल्दी का काम शैतान का इसीलिए कहते हैं :)

Comment by Mahendra Kumar on February 22, 2017 at 9:17pm
आदरणीय नीलेश जी, इस शानदार ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
Comment by Samar kabeer on February 22, 2017 at 6:05pm
'रब्त टुटा था ज़माने से मेरे पहले पहल'
'मेरे'शब्द को "मेरा"लिखिये न ?
Comment by जयनित कुमार मेहता on February 22, 2017 at 3:28pm
आदरणीय नीलेश जी, शानदार ग़ज़ल के लिए दिली दाद ओ मुबारकबाद आपको।

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