For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल नूर की : इश्क़ हुआ है क्या?

22. 22. 22. 22. 22. 22. 2

तन्हा शाम बिताते हो
तुम, इश्क़ हुआ है क्या?
मंज़र में खो जाते हो तुम, इश्क़ हुआ है क्या?
.
बारिश से पहले बादल पर अपनी आँखों से,
कोई अक्स बनाते हो तुम, इश्क़ हुआ है क्या?

ज़िक्र किसी का आये तो फूलों से खिलते हो,
शर्माते सकुचाते हो तुम, इश्क़ हुआ है क्या?
.
होटों पर मुस्कान बिना कारण आ जाती है,
बेकारण झुँझलाते हो तुम, इश्क़ हुआ है क्या?-
.
दरगाहों पर और मन्दिर में शीश झुकाते हो,
तावीज़े  बँधवाते हो तुम, इश्क़ हुआ है क्या?
.
“नूर” तुम्हे अक्सर ख़ुद ही में उलझा देखा है
अच्छे शेर सुनाते हो तुम, इश्क़ हुआ है क्या?      
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 1124

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 5, 2017 at 1:57pm

शुक्रिया आ. महेंद्र जी 

Comment by Mahendra Kumar on March 5, 2017 at 1:08pm
आदरणीय नीलेश जी, बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही आपने। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 4, 2017 at 8:45pm

कमजोरी तो ब्राह्मण मो बिरहमन लिखना भी मानी जा सकती है आदरणीय ...
कमी खोजने वालों का क्या .....

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 4, 2017 at 7:33am

आ. राघव जी ..
भाषा कोई स्थिर तालाब नहीं है ... एक बहती नदी है जो सतत नए शब्दों की उत्पत्ति करती रहती है..
आप जिसे बेबस शब्द कह रहे हैं वो संस्कृत के वश-विवश का अपभ्रंश मात्र है...
हो सकता है आने वाले वर्षों में बे-कारण भी उतना ही मानी हो जितना बेबस ..अत: मुझे जब भी इस प्रकार के प्रयोग का अवसर मिलेगा, मैं किसी भर्ती के शब्द को डालने की जगह कम प्रचलित शब्द अवश्य लूँगा...

सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 4, 2017 at 7:29am

शुक्रिया आ. सुरेन्द्र नाथ जी 

Comment by नाथ सोनांचली on March 4, 2017 at 6:27am
आदरणीय नीलेश जी सादर अभिवादन। बहुत ही खूबसूरत अशआर बने है, खास कर यह शैर

दरगाहों पर और मन्दिर में शीश झुकाते हो,
तावीज़े बँधवाते हो तुम, इश्क़ हुआ है क्या

हर इश्क करने वाले की हर ऐडा को लिख डाला आपने, बधाई निवेदित है।
राघव जी के बेकारण शब्द पर बस इतना कहूंगा कि अकारण ही मुझे भी ज्यादा उचित लगता है, बेकारण की अपेक्षा। आप इसे एक पाठक के नजरिये से देखियेग, सादर
Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 3, 2017 at 6:49pm

आ. राघव जी,,
आप जिसे निदा साहब का सबसे कमज़ोर शेर कह रहे हैं अगर वैसा एक भी मैं कह पाया तो स्वयं को धन्य मानूँगा.
रही बात प्रयोगधर्मिता की तो वो पुरानी या नई पीढ़ी की छाप लेकर नहीं आती... किसी ने बीस बार किया हो कोई प्रयोग, मैंने जब पहली बार किया तो मेरे लिये नया अनुभव रहेगा... मेरा प्रयोग खपेगा या व्यर्थ जाएगा ये तो भविष्य तय करेगा..
और व्यर्थ भी रहा तो भी मुझे संतुष्टि होगी क्यूँ की मैं स्वांत: सुखाय ही लिखता हूँ ...
आप ने अपना कीमती वक़्त दिया इसके लिये बहुत बहुत धन्यवाद ...
आगे भी आप से सुझाव मिलते रहेंगे ऐसी अपेक्षा है..
सादर  

Comment by आशीष यादव on March 3, 2017 at 7:21am
I don't know more about ghazal. But this one is good.
Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 2, 2017 at 9:36pm

आ. राघव जी,

आप की शैली मुझे मंच पर उपस्थित किसी वरिष्ठ की याद दिलाती है :))..
लेकिन फिर भी आप के द्वारा उठाये गए प्रश्नों का जवाब देना ज़रूरी है..
ग़ज़लगोई चूँकि मेरा पेशा नहीं, शौक है इसलिए इस ग़ज़ल समेत मेरी सभी ग़ज़लें कामचलाऊ ही कही जा सकती हैं..
आप ने जिस बेकारण शब्द को बे-कारण करार दिया है उसे निदा साहब ने कुछ यूँ इस्तेमाल किया है..
.
उससे बिछड़े बरसों बीते लेकिन आज न जानें क्यूँ
आँगन में हँसते बच्चों को बेकारण धमकाया है...
.
शायद निदा साहब ने अकारण शब्द सीखा ही नहीं होगा या सिर्फ छन्द निबाहने के लिये इस शब्द का इस्तेमाल कर लिया होगा..
वाइज भी जब बाज़ार में हर शब्द के कई पर्यायवाची उपलब्ध हों तो कुछ चुनिन्दा शब्द शायद छन्द की मांग को पूरा करने के लिये ही लिये जाते हैं... ये ज़रूरत भी है और ख़ूबी भी...
आप को मिसरे गद्य सामान लगे इसे मैं बड़ी उपलब्धि मानता हूँ क्यूँ कि हर मिसरा एक वाक्य ही है ..जो एक निश्चित मात्रा क्रम को फॉलो करता है ...
मिसरे को छन्द-बद्ध वाक्य भी कहा जा सकता है .....
रही बात ग़ज़लियत की ..तो आपके सुझाए मिसरे में  'ही' भर्ती का शब्द है जिसे मैं सही नहीं मानता ...
ग़ज़ल आप तक पहुँच नहीं सकी इसका खेद है.
सादर 
  

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 2, 2017 at 6:21pm

शुक्रिया आ. राघव जी ...
आप की प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार रहेगा 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति हुई है । हार्दिक बधाई सर"
8 hours ago
Admin posted discussions
10 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"रिश्तों की महत्ता और उनकी मुलामियत पर सुन्दर दोहे प्रस्तुत हुए हैं, आदरणीय सुशील सरना…"
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक - गुण
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, बहुत खूब, बहुत खूब ! सार्थक दोहे हुए हैं, जिनका शाब्दिक विन्यास दोहों के…"
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय सुशील सरना जी, प्रस्तुति पर आने और मेरा उत्साहवर्द्धन करने के लिए आपका आभारी…"
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय भाई रामबली गुप्ता जी, आपसे दूरभाष के माध्यम से हुई बातचीत से मन बहुत प्रसन्न हुआ था।…"
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय समर साहेब,  इन कुछेक वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है। प्रत्येक शरीर की अपनी सीमाएँ होती…"
22 hours ago
Samar kabeer commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"भाई रामबली गुप्ता जी आदाब, बहुत अच्छे कुण्डलिया छंद लिखे आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।"
yesterday
AMAN SINHA posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . विविध

दोहा पंचक. . . विविधदेख उजाला भोर का, डर कर भागी रात । कहीं उजागर रात की, हो ना जाए बात ।।गुलदानों…See More
Wednesday
रामबली गुप्ता posted a blog post

कुंडलिया छंद

सामाजिक संदर्भ हों, कुछ हों लोकाचार। लेखन को इनके बिना, मिले नहीं आधार।। मिले नहीं आधार, सत्य के…See More
Tuesday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service